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________________ ४१] धरणानुयोग हस्तकर्म प्रायश्चित्त सूत्र भूत्र ६२३.६२४ तेललेग जाव-णवणीएण बा, अभंगेज्ज वा, मक्खेज्ज वा, आमंतंबा, मक्खतं का साइज्जह । जे मिक्खू माउरगामस्स मेहुणवडियाए अंगादाणं लोण वा जाव-वण्णण वा, उसबष्टवा, परिवोवा, उव्यदृतं वा, परिवहतं या साइज्जइ । जे भिक्कू माउरगामस्स मेतृणडियाए अंगावा सीओराषिपडेण वा, उसिणोग वियोण वा, उच्छोलेउन ना, पधोएउजवा, उम्छोलतं वा, पधोएतं वा साइजह । में भिक्खु माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अंगावाण तेल-यावत्-मक्खन, मले, बार-बार मले, मसवावे, बार-बार मलवावे, मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियो मिसकी (ऐसी स्त्री से) मयुन सेवन का संकल्प करके जननेन्द्रिय पर लोध्र-पावद- वर्ण का, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उबटन करबावे, बार-बार उबटन करवावे, उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके जननेन्द्रिय को - अचित्त शीत जल से या अवित उष्ण जल से, धोवे, बार-बार धं.ये, घुलवावे, बार-वार धुलवावे, धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियों जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल करके जननेन्द्रिय की___ त्वचा को ऊपर उठाता है. ऊपर उठवाता है, ऊपर उठाने वाले का अनुमोदन करता है । जो मिझ माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मथुन सेवन का संकल्प करके जननेन्द्रिय को सूंघता है, सुंघवाता है, सूंघने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके जननेन्द्रिय को अन्य किसी अचित्त छिद्र में प्रवेश करके वीर्य के पुद्गल को, निकालता है, निकलदाता है, निकालने वाले का अनुमोदन करता है। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। हस्तकर्म प्रायश्चित्त सूत्र -. ६२४. जो भिक्षु हस्तकर्म करता है, करवाता है, करने बाले का अनुमोदन करता है। उसे अनुद्घातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। पिच्छल्लेइ, णिश्छलेतं वा साइजह । जे मिळू माउणामस्स मेहणवडियाए अंगादाण जिग्घइ, जिन्तं वा साइज्जद । में भिक्जू मा उग्गामस्स मेहणवडियाए अंगावाणं - अन्नपरसि अघिसंसि सोयति अणुपवेसेता सुबकपोग्गले, निम्घायह, निधायत वा साइजा। # सेवमाणे आवम्बई चाजम्मासिय परिहारहाणं अणुग्धाइयं। -नि. उ ६, सु. ३.१. हत्यकम्मपाय:च्छत्तसुतं६२४. जे भिक्खू हायकम्म करेड करेंतं वा साइजह । हं सैचमाणे भावज्जइ मासियं गरिहारहाणं अणुयाइयं। -नि.उ.१ .१
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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