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________________ सत्र ६२२-६२३ मंबुन सेवन के संकल्प से अंगणवान परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र चारित्राचार [४१५ मम्मंगेग्न वा, मक्खेवा , अम्मंगेतं वा, मक्खेत का, साज्जा । मे भिल अंगावागंसोडेण वा-जाव-वग्गेण वा, उध्वट्टया , परिवह वा उतं वा, परिवदृतं वा साइजह । जे मिमल अंगागणंसोओवग-वियोण वा, उसिणोबग-वियोण बा, उच्छोलेज्म वा, पधोएज्न बा, मले, वार-बार मले, मलवावे. बार-बार मलदाये. मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करें। जो भिक्षु जननेन्द्रिय परलोध,-यावत्-वर्ण का, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवाये, उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु जननेन्द्रिय कोअचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जन से, धोवे, बार-बार धोवे, धुलवावे, बार-बार धुलवावे. घोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे । जो भिक्ष जननेन्द्रिय के अग्र भाग की त्वचा को ऊपर की ओर करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु जननेन्द्रिय कोसूंघता है, सुंचबाता है, सूंघने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु जननेन्द्रिय कोकिसी अचित्त छिद्र में प्रवेश करके वीर्य के पुद्गलों को निकालता है, निकलवाता है, निकालने वाले का अनुमोदन उच्छोलतं वा, पधोएंतं वा साइज्जद । जं मिक्ख अंगादाणं निठलेह, निश्छलत वा साइज्जद्द । जे भिक्खू अंगादाणजिग्घइ, जिग्घतं वा साइज्जइ । जे भिक्स अंगाराणं - अण्णयसि अचित्तंति सोयंसि अपवेसित्ता सुक्कपोग्गले, निग्घायद, निग्घायंत या साइज्जइ । ते सेवमाणे आवज्जइ मासिय परिहारदाणं अणुयाइय। उसे अनुद्घातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) नि० उ० १, सु०२-६ आता है। मेहणवडियाए अंगादाणपरिकम्मरस पायच्छित्तसत्ताई- मैथुन सेवन के संकल्प से अंगादान परिकर्म के प्रायश्चित्त ६२३. जे भिक्खू माजगामस्स मेहुणडियाए अंगादाणं क₹ण या, फिलिचेण वा, अंगुलियाए घा, सलागाए वा, संघालेड, संचालतं वा साइज्बइ। जे मिक्ल माजग्गामस्स मेहडियाए अंगावराण ६२३. जो भिक्षु माला के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथन सेवन का संकल्प करके जननेन्दिम का काष्ट से, बांस की खपत्री से, अंगुली से या शलाका से, संचालन करता है, संचालन करवाता है, संचालन करने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मथुन सेवन का संकल्प करके जननेन्द्रिय का मर्दन करे, प्रमर्दन करे, मर्दन करवावे, प्रमदंन करवावे, मर्दन करने वाले का, प्रमर्दन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैयन सेवन का संकल्प करके जननेन्द्रिय पर संबाहेज था, पलिमद्दे ज्ज वा, संबाहेंतं वा, पलितं वा साइजइ । जे निमखू माउन्गामस्स मेहुणवडियाए अंगादाणं -
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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