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________________ सूत्र १५ धर्म प्रशापक भगवान महावीर धर्म प्रतापना [१३ आणामिय चाप-नहस किण्डममराइतणु-कसिणणिव भमुहे अवदालिय-पुंडरीय-णयणे कोआसिय-धवल-पत्तलच्छे गरलाययउज्जु-तुंग-णासे उत्रिय-सिखप्पवाल-बित्रफलसग्णिभाहरोह्र पपुर-ससिसयल-विमल-णिम्मलसंख-गोखीरफेक - कुंव-वग - रयमुणालिया-धवल वंतसेही अखंड दंते उप्फुडिय बंते अविरल दते सुणि दंते सुजाय दंते हुयबह-णित-धोय-तत्त-तबणिज्जरततल-तालु-जोहे अवट्टिय-सुविभत्तचित्त-मंसू। मसल-संठिय-पसस्थ सदूल विउल हणुए चउरंगुल-सुप्पमाण-कंबुबरमरिसग्गीवे उनकी भोंहे नमे हुए धनुष के समान टेढ़ी, काले बादल के समान पूर्ण पतली एवं चिकनी थी उनके नयन विकसित पुण्डरीक कमल जैसे थे आँख के अन्दर के श्वेत-श्याम भाग बहुत तेज ये उनकी नासिका गफड़ की चोंच के समान लम्बी सीधी और ऊँची थी उनके ओष्ठ प्रवाल शिल' अथवा बिम्बफल सहश थे उनकी दन्तधणी चन्द्रखण्ड, विमल निर्मल शंख, गौदुग्ध के झाग, कुन्द पुष्प, और कमलतन्तु जैसी श्वेल थी उनके दांत अखण्ड थे उनके दांत पटे हुए नहीं थे उनके दांत एक दूसरे के साथ धे उनके दांत चिकने थे उनके दांत सुन्दर थे उनका तालु और जिह्वा अम्नि से तपाये हुए एवं जल से धोये हुए स्वर्ण सहश रक्ततल वाले थे उनके दाढ़ी-मूंछ सवा समान एवं सुलझे हुए रहते थे उनकी ठुड्डी शार्दूल सिंह की ठुड्डी के समान मांसलसुस्थित-प्रशस्त एवं पुष्ट श्री उनकी गरदन चार अंगुल (चौड़ी) प्रमाणवाली श्रेष्ठ संख सहश थी उनके स्कन्ध धेष्ट महिष, यूकर, शार्दूल सिंह, वृषभ और श्रेष्ठ हस्ति के स्कन्ध जैसे थे ____ उनकी भुजायें गाड़ी के जुए जैसी पुष्ट एवं सुन्दर विशिष्ट स्नायुओं से सुवद्ध सुदृढ़ सन्धियों से संगत एवं स्थिर बालाइयों से युक्त नगर द्वार के कपाट) की अर्मला जैसी गोल थी उनके हाथों में चन्द्र, सूर्य, शंख, चक, दक्षिणावर्त स्वस्तिक आदि की सुन्दर एवं स्पाट रेखायें थी। उनके हस्ततल वृद्-मासल तथा प्रातस्त लक्षण युक्त थे और अंगुलियां मिलाने पर उनमें छिद्र नहीं दिखाई देते थे उनकी श्रेष्ठ अंगुलियां पृष्ट एवं कोमल थीं उनके हाथ को अंगुलियों के नख अल्प रक्तवर्ण के स्वच्छ स्निग्ध पतले तथा चमक वाले थे उनका बक्षस्थल स्वर्णशिना सहश उज्ज्वल विशालसमतल-पृष्ट-चौड़ा तथा श्रीवल्स नामक स्वस्तिक से अंकित था उनके पार्श्वभाग श्रमशः संकुचित, गरीगनुसार संगतसुन्दर-पुष्ट-प्रभाणोपेत सुनिष्पन्न थे उनका उदर मत्स्य तथा पक्षी जैसा मुन्दर था उनके उदर की आंतें स्वस्थ थीं वर महिस-बराह-सीहसल उसभ-णागवर-पडिपुष्ण खंधे जुग-सग्णिभ-पीण-रइअ-पीचर पउठिए मुसिसिट्ट-विसिलिट्ठ-घथिर-सुबद्धसंधि-पुरवरफलिहवट्टिय भए चंद-सूर-संख-चक्क-दिसासोत्थिय-विभत्त-सुधिरइय पाणिलेहे रत्ततलोबइय-भउय-सल-सुजाय-लक्षण-पसत्यअछिह जालपाणी पौवर कोमल वरंगुली आयंत्र-तंबन्तलिन सुई-रुइलणिव जखे कण गसिलातलुज्जल-पसत्य-समालउपचिय-वित्यिण - पिट्ठल-सिरिवच्छंकिय वच्छे सण्णध-संगय-सुंदर सुजाय-नियमाइय-पीणराय पासे मस-विहग-सुजायण कुच्छी सुइकरने
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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