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१२]
चरणानुयोग
धर्म प्रज्ञापक भगवान महावीर
सूत्र १६
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बुद्ध
जीवाजीव द्रव्यों के ज्ञाता बोहए।
जीवाजीव द्रव्यों के बोधक । संठवण्णू
सर्वज्ञ सम्वदरिसी
सर्वदर्शी सिव-मयल-मरुअ- मत-भक्खय-मवावाह-मपुणरावत्ता
उपद्रवरहित, स्थिर, रोगरहित, अनन्त, अक्षय, बाधा
रहित, अपुनरावर्तक सिद्धिगह नामधेय ठार्य संपाविउकामे
सिद्धगति नामक स्थान को प्राप्त करने की कामना
बाले थे अरहा जिणे केवली
वे अर्हन्त जिन केवली थे सत्तहत्युस्महे
बेसात हाथ ऊँचे थे समचउरंससंठाणसलिए
वे समचोरस संस्थान से स्थित थे वस्तारसहनारायसंघयणे
वे वज्रऋषभनाराच संहनन वाले थे अगुलोम वाउवेगे
उनके शरीर में सभी वायु अनुकूल वेगवाले थे कंकरगहणी
कंक पक्षी के समान उनकी ग्रहणी थी कबीयपरिणामे
कपोत के समान उनकी पाचन शक्ति थी सणिपोस-पिटुन्तरोरूपरिणए
उनके पृष्ठभाग के अन्त में अपान और उस पक्षी के
समान सुगठित घे पउमुप्पल गंध सरिस णिस्सास सुरभिवयणे
उनका निःश्वास और बदन पदमकमल जैसा सुगंधित था निरायंक-उत्तम-पसत्य-अइसेयणि रुखमपले
उनके शरीर में मांस रोगरहित, उत्तम, प्रशस्त अतिश्वेत
एवं अनुपम या जस्त-मल-कलंक-सेय-रबदोसज्जियसरीरे णिस्यले
उनका शरीर गाढ़मल-मदुमल-दाग-स्वेद-रजदोष रहित
एवं अलिप्त था छाया उज्जोदयंगमगे
उनकी छाया और प्रत्येक अंग उयोतित थे घण-णिचिय-सुबद्ध-लक्खमुन्नायकडागारणिभ-पिडिय
उनका मस्तक सघन-सुबद्ध-स्नायु पुत उत्तम लक्षण संपन्न मसिरए
पर्वत के उन्नत शिखर पिण्ड जैसा था सामलिबोंड-धण-गिचियफोडियामा-बिसय-पररथ मुहुम
उनके मस्तक पर केश सेमल फल के फटने से निकले लक्षणसुगंध-सुन्दर-मुजमोचक-भिगणील-कज्जल-पहल-अमरगण हुए सघन रेणे' जैसे मदु-विशद-प्रशस्त-सूक्ष्म-लक्षण-सम्पन्न-मुगगिद्ध-गिकुरंब-णिजय-कुंचियपयहिणावत्तमुद्धसिरए
न्धित सुन्दर थे, भुजमोचक-नीलभ'ग और कज्जल जैसे तथा
भ्रमरगण जैसे काले चमकीले पुष्ट सघन एवं दक्षिणावर्त थे वाडिम-पुष्प-पकास-तवणिज्जसरिसगिम्मल-सुणिड केसंत उनके सिर पर केश उत्पन्न होने वाली त्वचा अनार के केसभूमि
पुरप जैसी तथा तपाये हुए स्वर्ण जैसी निर्मल एवं चिकनी थी छत्तागारुत्तमांगदेसे
उनके मस्तक का मध्यभाग छवाकार घा णिय्यण-सम-लठ-मह चंदद्धसमणिडाले
उनका ललाटवण रहित समपुष्ट - शुद्ध - अर्द्धचन्द्राकार
जैसा था उडवाइ-पठिपुण्ण-सोमवयणे
उनका मुख प्रतिपूर्ण शशिसम सौम्य था अल्लीण-पमाणजतसवणे
उनके श्रवण संगत एवं प्रमाणोपेत थे पौण-मंसल-कवोलदेसभाए
उनके कपोल पुष्ट एवं मांसल थे