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सूत्र १६
धर्म प्रज्ञापक भगवान महावीर
धर्म प्रज्ञापना
११
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धम्मपण्णवणा
धर्मप्रज्ञापना
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१६. ते णं काले णं
ते णं समए ण समणे भगवं महावीरे। आइगरे तित्थयरे सर्य संबुझे। पुरिसुत्तमे पुरिससोहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्यी। लोमुत्तमे लोगनाहे लोमहिए लीगपईय लोगपज्जोयगरे । अभयदए चक्यूबए मगरए सरणवए जीववए बोहिवए। धम्मदए धम्मदेसए धम्मनायगे धम्मसारही धम्मवर चाउरंत उक्कवट्टी। श्रीयो तागं सरणगई पइट अप्पडिहयवरणाणवंसणधरे । वियट छतमे।
१२. उस काल में
उस समय में श्रमण भगवन् महावीर। श्रुत-चारित्र धर्म के प्रवर्तक चतुर्विध तीर्थ के संस्थापक स्वयंबुद्ध। पुरुषों में उत्तम पुरुषों में सिंह समान पुरुषों में श्रेष्ठ पुण्डरीक कमल समान पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ति समान । लोक में उत्तम लोक के नाथ नोकहतकर लोक में दीपक समान लोक में उद्योतकर्ता। अभयदानदाता गानचक्षुदाता मोक्ष) मार्गदर्शक गरणदाता जीवदयाकर्ता बोधिदाता धर्मदाता धर्मोपदेशक धर्मनायक धर्म सारथी धर्म के श्रेष्ठ चतुर्दिक चक्रवतीं। तोप समान रक्षक शरणागत के आधार आवरण रहित अनुत्तर ज्ञान दर्शन के धारक । छद्म-छल से सर्वथा निवृत्त । राग-द्वेष के विजेता राग-द्वेष जीतने का पथ वकाने वाले संसार सागर से उत्तीर्ण भषसागर से तारक बाह्याभ्यन्तर परिग्रह से मुक्त परिग्रह से मोचक
जिणे
जागए
तिपणे
तारए मुझे मोयाए