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________________ ver] चरणानुयोग विकुविययेण मेणसंपायच्छत मुसाई ६१७. देवेय इत्यवं विदितानिन् पहिल्या हिन्जा रिसाइरामेष्यवि विकुवित रूप से मैथुन-संकल्प के प्रायश्चित सूत्र भावज बाउम्बासियं परिहारद्वाणं अनुग्धाह देवे व रिस बिनिता निर्णय पहियाहिया निधी साइना मेडिगपत्ता, आमदारमाशियं परिहारहाणं अनुयाइयं । बेबी अ इत्यवं विविधता निम्मं पहियाहेन्या निगं साइज्या मेहुणपरिसेवणपत्ते, आज बारम्बासिय परिहारद्वाणं अणुग्या देवी पुरिस विनय पहिल्यातं व निधी साइजेजा मेवविशेवणसा आवक चाम्पासिवं परिहारट्ठानं अणुग्धाइयं । ---कम्प. उ. ५, सु. १४ मेडियाए तिमिच्छाकरणस्स पार्याच्छित सुत्ताई - ६१८. जे मिक्यू माडग्यामस्स मेंहणवडियाए बाबा पोतं वा मल्लायएण पाएइ, उपायंत या साइज । माम मेहुणवडियाए पितं पर, सोयंतं मा, पोतं या, सूत्र ६१७ ६१८ wwwww विदित रूप से मैथुन संकल्प के प्रायश्चित सूप ६१७. यदि कोई कुर्वा शक्ति से स्त्री का रूप बनाकर निर्दग्ध का आलिंगन करे और वह उसके स्पर्श का अनुमोदन करे तो - (मैथुन सेवन नहीं करने पर भी मैथुन सेवन के दोष को प्राप्त होता है । अतः वह (निर्ग्रन्थ) अनुद्धातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त) का पात्र होता है। यदि कोई देव (विकुर्वणा शक्ति से) पुरुष का रूप बनाकर निधी का आलिंगन करे और वह उसके स्वयं का अनुमोदन करे तो (मैथुन सेवन नहीं करने पर भी) मैथुन सेवन के दोष को प्राप्त होती है । अतः यह (निची) अनुयातिकासिक परिहारस्वान (प्रायवित्त) का पात्र होती है। यदि कोई देवी (वा शक्ति से स्त्री का रूप बनाकर गिरथ का आलिंगन करें और वह उसके स्पर्श का अनुमोदन करे तो मैथुन सेवन नहीं करने पर भी मैथुन सेवन के दोष को प्राप्त होता है अतः वह निर्ग्रन्थ अनुद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रा) का पात्र होता है। यदि कोई देवी पुरुष का रूप बनाकर निर्बन्धी का आलिंगन करे और वह उसके स्पर्श का अनुमोदन करे तो | मैथुन सेवन नहीं करने पर भी ] मैथुन सेवन के दोष को प्राप्त होती है। अतः यह [निर्ग्रन्थी] अनुद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान [ प्रायश्चित्त ] का पात्र होती है। 11 मैथुन सेवन के संकल्प से चिकित्सा करने का सूत्र— ६१८, जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियों जिसकी [ ऐसी स्त्री से] मैथुन सेवन का संकल्प करके- उस स्त्री की योनि को, अपान को या अन्य छिद्र को, भिलावा आदि से उत्तेजित करता है, उत्तेजित करवाता है. अजित करते जाने का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियां जिसकी ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके उस स्त्री की योनि को, अपान को या अन्य छिद्र को,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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