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________________ अ६१८ मपुन सेवन के संकल्प से चिकित्सा करने का सूत्र चारित्राचार [४१५ भल्लायएण उप्पाएतासोओबग बियरेण वा, उसिणीय वियोण का, उच्छोलेष्म वा, पधोएज्न वा, उन्छोलेत या पधोबत चा साइजइ । के सिक्खू माडग्गामस्म मेहुणवडियाए पिटुन्सं वा. सोमंत या, पोसतं वा, महसायएण उत्पाएसा सोओग वियोण श, उसिणोबग वियडेण बा, उच्छोलेसा पा, पोइत्ता वा, अभयरेण श्रावणजारणं आलिपेम्ज वा, विलिपंज्न या, मालिपंत पर, विलित वा साइउजद । जे भिक्खू माजग्गामस्स मेहणवाडयाए पिटुन्तं वा, सोपंत घा. पोसतं वा, मल्लायएण उम्पाएतासोलोम विपडेग वा, उपिणोदग वियोण बा, उन्होलेसा वा, पछोएता पा-- अनवरेणं आलेवयजाए आलिपित्ताबा, विलिपिसा वा, तेस्लेग वा-जाव-गवणीएण वा. अम्मंगेज बा. मक्तेज्ज वा, भिलावा आदि से उत्तेजित करके, अचित्त शीत जल से या चित्त उष्ण जल से, धोवे, बार-बार धोवे, धुलवावे, वार-बार धुलवावे, छोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे । जो भिक्षु माता के ममान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐमी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके, उम स्त्री को योनि को, अपान को या अन्य छिद्र को, भिलावा आदि से उत्तेजित करके, अचित्त शीन जल से या अचित्त उष्ण जल से, धोकर, बार-बार धोकर, अन्य किसी लेप का लेपन करे, बार-बार लेपन करे, लेपन करवावे, बार-बार लेपन करवावे, लेपन करने वाले का, बार-बार लेपन करवाने वाले का अनुमोदन करे। ___ जो भित माता के मा इन्दिया जिसकी (ऐसी स्वी से) मैथुन संबन का संकल्प करके उस स्त्री की योनि को, अपान को या अन्य छिद्र को, भिलावा आदि से उत्तेजित करके, अचिस शीत जल से या अचित्त उष्ण जन से, धोकर, बार-बार धोकर, अन्य किसी लेप का, लेप करे, बार-बार लेप करें, तेन-यावत्-मकवन, मले, बार-बार मले. मलवाचे, बार-बार मलवावे, मलने वाले का, बार-बार मनने वाले का अनुमोदन करे । जो भिक्ष, माता के गमान हैं इन्द्रियां जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके उम स्त्री की योनि को, अपान को या छिद्र को, भिलावा आदि से उनजित करके, अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, धोकर, बार-बार धोकर, अन्य किमी लेप का, नेए कर, बार-बार लेप कर, तेल-यावत्-मक्खन, मलकर, बार-बार मलकर, किसी एक प्रकार के घूप से, धूप दे, बार-बार धूप दे, धूप दिलवावे, बार-बार घूप दिलवावे, अरमंतं वा, मक्खेत वा साइजइ। जे भिक्खू माउन्गामस्स मेहुणवडियाए पिटुम्तं वा, सोयतं वा पोसंतं वा, चल्लायएण उपाएत्तासौओवग वियरेण वा, उसिणोरग वियरेण वा, उन्छोलेसा वा, पधोएता वा, अन्नयरेणं आलेबणजाएणं, अलिपिसा वा विसिपित्ता बा, सेस्लेग बा-जाव-णवणोएगवा, सम्भवेत्ताबा, मक्छता वा, अग्णवरेणं धूवणमाएणं धूवेन्ज बा, पधूम वा,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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