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________________ ५५ ११४-६११ मैथुन के संकल्प से परस्पर केश पारकर्ष का प्रायश्चित सूत्र पारिवाचार १३ मेहणवडियाए अण्णमण्ण केसपरिकम्मस्स पायच्छित्त मंथन-सेवन के संकल्प से परस्पर केशपरिकर्म का प्रायसुत-- श्चित्त सूत्र६१४. (जे मिक्खू माजग्गामस्स मेणवडियाए अण्णमण्णरस वोहाई ६१४. (जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री केसा से) मैथुन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के लम्बे केशों कोकप्पेश्य वा, संठवेन वा, काटे, मुशोभित करे, कटवाने, मुशोभित करवावे, कप्पेतं वा संठतं वा साइजा। काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करें। त सेवमागे आवजह चाउम्मासियं परिहारट्ठाण अणुग्धाइयं । उसे चातुर्मासिक अनुदानिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ.७, मु. ६३ आता है।) मेहगवडियाए अण्णमण्ण-सीसवारियं करणस्त पाय- मथुन-सेवन के संकल्प से परस्पर मस्तक ढकने का च्छिस सुत्तं प्रायश्चित्त सूत्र - ६१५. बेमिमषु माजग्गामास मेहुणयडियाए अण्णमास्स गामा- ६१५. जो भिक्ष माता के समान हैं इन्द्रियो जिसको (ऐसी स्त्री गुगामं कूदनमाणे से) मैथुन सेवन बा संकल्प करके प्रामानुग्राम जाते हुए एक दूसरे के मस्तक कोसोस दुचारिय करेह, करतं वा साइजह । ढकता है, इकमाता है, ढकने वाले का अनुमोदन करता है । सं सेबमागे आवस्जद चाउम्मासियं परिहारट्ठागं अशुग्धाइये। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (पायश्चित्त) -.नि. उ.७, सु. ६६ आता है। ३. मथुन के संकल्प से निषिद्ध कृत्यों के प्रायश्चित्त-(१०) मेहणसेवण संकप्पस्स पायज्छिस-सुत्ताई मैथुन सेवन संकल्प के प्रायश्चित्त मूत्र११६. निग्गयो च गं गिलायमाणि पिया बा, माया मा, पुत्तो वा, ६१६. रत्वान निर्ग्रन्थी के पिता, भ्राता या पुत्र गिरती हुई निग्रन्थी पलिस्सएज्मा को हाथ का सहारा दें, गिरी हुई को उठायें, स्वतः उठने-बैठने में असमर्थ को उठावे, बिठावें - तं मिग्गंधी साइन्जेना मेतृणपहिसेवणपत्ता, उस समय वह निम्रन्थी (पूर्वानुभूत भैथुन सेवन को स्मृति से) पुरुष स्पर्श का अनुमोदन करे तो, आप चाउम्मासिय पदिारागं अणुग्धाइयं । उसे अनुद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। निग्गय व गं गिलायमागं माया का, भगिनी वा, घूया वा, लान निग्रन्थ की माता, बहन या बेटी गिरते हुए निग्रन्थ पलिस्सएकना को-हाथ का सहारा दें, गिरे हुए को उठावें, स्वतः उठने-बैठने में असमर्थ को उठावें, बिठावें, संच निम्न साइनेज्मा मेहमपहिसेवणपतं, उस समय वह निर्गन्ध (पूर्वानुभूत मयन सेवन की स्मृति से) स्त्री स्पर्श का अनुमोदन करे तोमामाया माम्मासियं परिहारट्टागं अपघाहयं । उसे अनुद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -कप्प. उ. ४, सु.१४-१५ आता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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