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________________ ४०४] परणानुयोग मथुन सेवन के संकल्प से अक्षौपत्र परिकर्म का प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ५६८-१०० लोडेण था-जाब-वणेण वा, लोध-यावत्-वर्ण का, उस्लोलेग्ज वा, उबट्टज का, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उबटन करवाये, बार-बार उबटन करवावे, उस्लोलत बा, उस्वदृत वा साइन्जइ । उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्त माजग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो अच्छोणि- जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐमी स्त्री से) कुन सेवाका के 14.14 कोमोओग-वियण वा, उतिगोकग-वियरेण वा, बचित शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, उसछोलेज वा, पधोएन्ज वा, धोदे, बार-बार धोये, धुलवावे, बार-बार घुलवावे. उच्छो सेंत वा, पधोएत वा साइज्जइ । घोने बाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे। जे मिक्खू माउम्पामस्स मेहुणवडियाए अपणो अच्छोणि- जो भिक्ष माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके अपनी आँखों कोफूमेज्ज वा, रएग्ज वा, रंगे, दार-बार रंगे, रंगवावे, बार बार रंगवावे, फूमेत बा, रएंतं वा साइजद । रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करें । त सेवमाणे भावग्मद चाउम्मासिय परिहारद्वाणं अग्धाइयं। उसे चातुर्मासिक अनुदातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. ६, सु. ६६-७१ आता है। मेहणवडियार अच्छिपत्त परिकम्परत पायच्छित्त सुत्तं- मैथुन सेवन के संकल्प से अक्षीपत्र परिकर्म का प्रायश्चित्त ५६६. जे मिक्खू माउगगामास मेहुणवडियाए अपणो वोहाई अच्छि- ५६६. जो भिक्ष माता के समान हैं इन्द्रियो जिसकी (ऐसी स्त्री पसाई से) मैथुन सेबन का संकल्प करके अपने लम्बे अक्षिपत्रों कोकप्पेज बा, संठवेज्ज वा काटे, सुशोभित करे, कटवावे, युशोभित करवावे, कप्त या संठवतं वा साइम्जा । काटने वाले का, मुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। त सेवमाणे आवमा चाउम्मासि परिहारद्वाणं अग्धाइय। जसे चातुर्मालिक अनुघातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. ६. सु. ६५ आता है। मेहुणवडियाए भुभगाहरोमपरिकम्मस्स पायच्छित सुत्ताइ- मैथुन सेवन के सकल्प से भौह आदि के रोमों का परिकर्म करने के प्रायश्चित सूत्र६... जे मिक्बू माउरणामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो शेहाद मुमग- ६००. जो भिक्ष माता के समान है इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री रोमा मे) मैथुन सेवन का संकल्प करके अपन भौह के सम्बे रोमों कोकप्पज्ज वा, संठवेन्ज वा, कार्ट, मुशोभित करे, कटवावे. मुशोभित करवावे, कप्त वा, संठवेतं वा साइजई । काटने वाले का, मुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । जं भिमलू माउणामस्स मेहुणडियाए अप्पणो दोहाइ पास जो भिक्ष माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसको (ऐसी स्त्री रोमा से) मैथुन सेवन का संकल्प करके अपने पावं के लम्बे रोमों को.
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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