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________________ ४.२ wwww मरणानुयोग मैथुन सेवन के सत्य से उत्तरोष्ठ रोगों के परिकर्म करने के प्रायश्चित सूत्र माग्दास मेहणवडियाए अपणो उ सेल्लेण वा जाव णवणोएण वा. भक्वेज्ज वा मिलिगेज्ज वा मक्तं वा मिलितं वा साइज्जइ । जे मिलू माउश्यामस्त मेहणवडियाए अध्यणो उ लोनावा चल्लोल्लेज्जषा, उट्टे उजवा, खल्लीले बा उट्टे तं वा साइज । जे भिक्खू माउगाम मेटुणवडियाए अप्पणी उट्ठ - सो वा उसको विवा च्छोलेज वा पोएम वा उच्छोलतं वा पधोएंत या साइज्जइ । जे भिक्खू मागामस्थ मेहुणवडयाए अध्यणो बहु फूमेज्ज वा, रज्ज या बारा स सेवापरिहारार्थ अनुयाइय - नि. उ. ६, सु. ५०-६३ मेडिए उत्तराद्राइरोमाणं परिकग्नस्स पायच्छित सृत्तं रोमाई मध्येज्ज वा संवेज्ज या कसबा, संतं वा साइज । (जेभिस्तू माउस्यास्त्र मेडिया अयोहा रोमाई करपेल्ज वा संठवेज्ज वर. कप्पे या संत वा साहब उस ) परिहाराणं अगुवाइ -- नि. उ. ६, सु. ६४ सूत्र ५६५-५६६ जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐमी स्त्री रो) मैथुन सेवन का सकल करके अपने होठों पर तेल - यावत् मक्खन, मले, बार-बार मले, मलवावे, बार-बार मलवावे, मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे । पास मेडिया अपनो हाइ उत्तरो ५३९ जो जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियां जिसकी ( ऐसी स्त्री से ) मत सेवन का संकल्प करके अपने होठों पर लोध-यश्वत्-वर्ण का उबटन करे, बार-बार उबटन करे. उबटन करवावे, बार-वार उबटन करवावे. उबटन करने वाले का बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी ( ऐसी स्त्री से ) येथून सेवन का संकल्प करके अपने होठो को अचित्त शीत जन्म से या अति उष्ण जल से, धोये, बार-बार धोये, घुलावे, बार-बार धुलावे, धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे । जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियों जिसकी (ऐसी स्त्री से ) नवेदन का संकल्प करके अपने होठों को " रंगे, बार-बार रंगे, रंगवावे, बार-बार रंगवावे, रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे । उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित ) आता है | मैथुन सेवन के सकल्प से उत्तरोष्ठ रोगों के परिकर्म करने का प्रायश्चित्त मूत्र - माता के समान है इन्द्रियों जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके अपने उत्तरोष्ठ के लम्बे रोमों (होटों के नीचे के लम्बे रोम को काटे, सुशोभित करे, कटवावे सुशोभित करवावे, काटने वाले का मुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। (जो भिन्न माता के समान हैं इन्द्रियों जिसकी ( ऐसी स्त्री से ) मैथुन सेवन का संकल्प करके अपने नाक के लम्बे रोमों को काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवाव, काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे ।) उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त) आता है ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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