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________________ सूत्र ८६-५६ विभूषा के संकल्प से क्षोपत्रों के परिफर्म का प्रायश्चित्त सूत्र चारित्राचार [३६७ विभूसावडियाए अच्छिपत्तपरिकम्मरस पायच्छित सत्तं- विभूषा के संकल्प से अक्षीपत्रों के परिकम का प्रायश्चित्त सूत्र५८६. जे भिक्खू विमूसावडियाए अप्पणो वोहाई अच्छिपसाई- ५८६. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने अभिपत्रों को.कप्पेज वा, संवेज्ज वा, काटे, सुशोभित करे, करवावे, मुशोभिन करवावे, कप्तं या संख्येत वा साइम्जा। काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन कर। त सेवमाणे आवज्जद चाम्सासिय परिहारट्ठाणं उपधाइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ. १५, सु. १४१ आता है। विभूसावडियाए भुमगरोमाणं परिकम्मस्स पायच्छित्त विभूषा के संकल्प से भौंहो आदि के रोमों के परिकर्म के सुत्ताई प्रायश्चित्त सूत्र५८७.जे मिक्सू विभुसावडियाए अपणो दोहाई मगरोसाई- ५८७. जो मिल विभूषा के संकल्प से अपने भौहों के लम्बे रोमों कोकापेज वा, संठवेज वा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्त वा, संडवेतं वा साहबइ । काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । जे भिक्खू विभूसावरियाए अपणा हाई पासराभाइ जो मि विभूषा के संकल्प से अपने पावं के लम्बे रोमों कोकप्येज्ज वा, संठवेज वा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवाचे, कप्पेतं या, संठवत वा साइजह । काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । त सेवमाणे आवस्जद घाउम्मासियं परिहारद्वरगं उम्शाइयं । उसे चातुर्मामिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि, उ. १५. सु. १४-१४६ आता है। विभुसावडियाए केस-परिकम्मस्स पायच्छित्त सुत्तं- विभूषा के संकल्प से केश परिकर्म का प्रायश्चित्त सूत्र-- ५८८. (जे भिक्षू विभूसावधियाए अप्पणो रोहाई केसाई-- ५६८. (जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने लम्जे केशों कोकरपेज्म वा, संठमेज वा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्तं वा, संठयत वा साइजाद।। काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । तं सेवमाणे आवमा चाउमासिय परिहारहाणं उम्घाइयं ।) उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. १४१ आता है। विभूसावडियाए सोसवारियकरणस्स पापच्छित्त सुत्तं-- विभूषा के संकल्प से मस्तक ढकने का प्रायश्चित्त सूत्र५८९. जे मिक्यू विभूसावडियाए गामाणगार्म दज्जमाणे- ५८९. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से ग्रामानुग्राम जाता हुआअप्पगो सीसवारियं करे, अपने मस्तक को ढकता है, कमाता है, करेंतं वा साइजाइ। ढकने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवश्जद नाउम्मासियं परिहारदाणं उग्याइय। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -----नि. उ.१५, सु. १५२ आता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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