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________________ ३९२] चरणानुयोग विया के संकल्प से गं को निकालने के प्रायश्चित सूत्र जे मिक्वाडिया कार्यलोण जाणे वा उसोन्या उल्लो या उपट्टतं वा साइन् । के मिन् विसावडियाए अप्पन कार्य-सीओोग वियद्वेण वा उसिनोवग-विय मा उच्छलेना. पोवा च्छो मा पधोएं या साइज्जइ । मि फूमैज्ज वा रज्ज बा, विसावडिया फूतं वा रतं वा साइज्जइ । मायामा परिहारा उत्पाद - नि. प. १५, सु. १०६-१११ विसावडियाए मलविहरणस्स पायच्छित गुसाई ७८. जे भिक्खू विसावडियाए अन्यणो अच्छिमलं वा, कृष्णमलं वा, दंतमलं वा नहमलं वा मोहरेग्न वा विसोबा नीरेतं वा विसोत वा सहज | जे मिलू विभूसावडियाए अप्पणी कायाओ सेयं वा जहलं वा, पंक वा, मल्लं वा, मोहरेज्ज था, विसोहेज्ज या, नोहरेतं वा, विसो वा साइज । बाम्मासयं परिहारद्वा - नि. उ १५, सु. १५०-१५१ विसावडियाए पायपरिकम्मस्स पायच्छित सुलाई १७२ वाडिया मध्यम पावे मामा आमज्जतं वा पमतं या साइज । सूत्र ५७७-५७९ जो विभूषा के संकल्प से अपने शरीर पर लोध - यावत्-वर्ण का, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उबटन करवादे, बार-बार उबटन करवाने, उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करें। जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने शरीर कोअतिशीत जल से या अति उष्ण जल से. धोये, बार-बार धोये, धुलवाये, बारम्बार धुलवावे, धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे : जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने शरीर कोरंगे, बार-बार रंगे, रंगवावे, बार-बार रंगवावे, रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे । उसे मासिक उद्यानिक परिहारस्थान (प्रायश्वित) आता है । विभूषा के संकल्प से मेल को निकालने के प्रायश्चित सूत्र ५७८. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने आँख के मैल को, कान के मैल को दांत के मैल को नव के मैल को, दूर करें, शोधन करे, दूर करवाये, शोधन करवावे, दूर करने वाले का शोधन करने वाले का अनुमोदन करे ।' जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने शरीर से स्वेद (पसीना को जल (जमा हुआ मैल को, पंक (लगा हुआ कीचड़ ) को, महल ( लगी हुई रज) को, दूर करे, शोधन करे दूर करवावे शोधन करवावे. ― दूर करने वाले का शोधन करने वाले का अनुमोदन करे उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित ) आता है । विभूषा के संकल्प से पैरों का परिकर्म करने के प्रायश्चित्त सूत्र- २७१. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने पैरों का मार्जन करे. प्रमार्जन करे. मार्जन करवाने, प्रमार्जन करवावे, मार्जन करने वाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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