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________________ अग्यतीथिक या गृहस्थ के केश परिकर्म का प्रायश्चित्त सत्र चारित्राचार [ . अण्णउत्थियस्स गारस्थियस्स केस परिकम्म-पायच्छित अन्यतीथिक या मल्हस्थ के केश परिकर्म का प्रायश्चित्त मूत्र ५१५. (जे भिक्खू अण्णउत्थियस्त वा, गारस्थियस्स या दोहाई ५७५. (जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ के लम्बे केशों को --- केसाईकप्पेज्ज बा, संठवेज्जा , काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, करतं वा. संठवतं वा साइज्जइ । काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । त मेवमाणे आवज चाउम्मासिथं परिहारट्ठाण अणुम्याइयं ।। उौ चातुर्मासिक अनुवातिक परिहारस्तान (प्रायश्चित्त) नि. उ. ११, सु. ५३ आता है। अण्णउत्थियस्स गारत्थियस्स सीसवारियकरणस्स पाय- अन्यतोथिक या गृहस्थ के मस्तक ढकने का प्रायश्चित्त च्छित्त सुत्तं५७६. जे भिक्खू गामाणुगाम दूइज्जमाणे अग्नउस्थियस्स षा, गार. ५७६. जो भिक्षु ग्रामानुमनाम जाता हुआ अन्यतीथिक या गृहस्थ स्यियस्त वासौस युवारियं करेड, करेंत वा साइज्म । मस्तक को टकता है, कवाता है, ढकने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवजह चाउम्मासियं परिहारट्ठागं अग्धाइय। उसे चातुर्मासिक अनुदातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) –नि 7. ११, सु. ६? पाता है। EMPS के विभूषा के संकल्प से स्व-शरीर का परिकर्म करने के प्रायश्चित्त-७ विभूसावडियाए कायपरिकम्मस्स पायच्छित्त सुत्ताई ५७७. जे भिक्खू विभूसाडियाए अप्पगो कार्य आमज्जेज्ज श. पमज्जेज्ज वा, रामज्जत वा, पमज्जतं वा साइपाइ । जे भिक्खू विभूमाखियाए अप्पगो कार्यसंबाहेज वा, पलिमज्जवा, . विभूषा के संकल्प से शरीर परिकर्म करने के प्रायश्चित सूत्र५७७. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने शरीर का मार्जन करे, प्रमार्जन करे, मार्जन करवाये, माजंन करवाचे, मार्जन करने वाले का, प्रमार्जन कसे वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने शरीर कामर्दन करे, प्रमर्दन करे, मर्दन करवावे, प्रमर्दन करवाये, मदन करने वाले का, प्रमर्दन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने शरीर परतेल-यावत् -मक्खन, मले, बार-बार मले, मलवावे, बार-बार मलवावे, मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे । संबाहेंसं वा, पलिमहतं वा साइज्म । जे मिक्यू विभूसावडियाए अपणो कार्यतेल्लेण मा-जावणवणीएम वा, मक्खेज वा, मिलिगेज्ज वा, मखेंतं वा, भिलिगेस वा साइज्जह ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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