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________________ २८८ चरणानुयोग अभ्यतीथिक या गृहस्थ के होठों परिकम के प्रायश्चिस सत्र सूत्र ५६६-५७० अण्णास्थियस्स गारथिवस्स ओपरिकामस्स पायपिछत्त अन्यतोथिक या गृहस्थ के होंठों के परिकर्मों के प्रायश्चित्त सुत्ताई सत्र५६६. जे भिक्षु अण्णउत्थि यस बा, गारस्थि यस्स था उट्ठी- ५६६. जो भिक्षु अन्यत्रीथिक या गृहस्थ के होठों का . धामन्जेज्ज था, पमन्ज वा, मार्जन करे, प्रमार्जन करे, मार्जन करवावे, प्रमाणन करवावे, बामज्जवा, पमम्जत वा साइज्जह । मार्जन करने वाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स बा, गारस्थि स्स वा उ8 जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ के होठों कासंबाहेज्ज वा, पलिमज्ज वा, सदन करे, प्रमदंन करे, मर्दन करवावे, प्रमदन करदावे, संबात वा, पलिमद्देस या साइज्जइ। मर्दन करने वाले का, श्मर्दन करने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू अग्ण अस्थियस्त वा. गारस्थियस्स वा उ8 जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ के होठों पर - तेल्लेण वा-जाव-यणीएण श. तेल-यावत्-- मक्खन, मस्खेज्ज वा, मिलिगेज्ज बा, मले, बार-बार मले, मलवावे, बार-बार मलवावे, मवोतं वा. मिलिगंतं वा साइजद । मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे । जे मिक्खू अग्णस्यियस्स वा, पारस्षियरस वा उ8 जो भिक्षु अन्यतीथिक या गहस्य के होठों परलोवेज या-जाव-वण्णेण वा, लोध-न्याय-वर्ण का, उल्लोलेज्ज वा, उबट्टज्ज वा, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उबटन करबाबे, बार-बार उबटन करवावे, उल्नोलत बा, उडयट्टीत वा साहरजह । उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे। मे मिक्ख अण्णउत्थियस्स पा. गारस्थियस्स या उ8-- जो भिक्षु अन्यनीधिक या गृहस्थ के होठों कोसीओवग-विपण वा, उसिणोदग-विनडेण वा, अचित्त शीत जल से या चित्त उष्ण जल से, छोलेजन वा, पधोएज्ज वा, धोये, बार-बार धोये, धुलवावे, बार-बार धुलवावे, उच्छोलेंतं का, पधोएत वा साइज्जइ । घोने वाले का, बारबार घोने वाले का अनुमोदन करे । जे भिवडू अण्णउस्थियस्त वा, गाररिचयस्स वा उट्ठ जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ के होठों कोफूमेग्ज वा, रएक्स वा, रंगे, बार बार रंगे, रंगवावे, बार-बार रंगनावे, फूमेंत वा, रएंत या साइज्जइ। रंगने वाले का, बार-बार रगने वाले का अनुमोदन करें। सं सेवमाणे आवजह चाउमासियं परिहारट्ठाणं अणुग्धाइय। उसे चातुर्मालिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित) -नि. उ. ११, सु. ४५-५० आता है। अण्णउत्थियस्स गारस्थियस्स उत्तरोवाइरोम-परिकम्म अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के उत्तरोष्ठ रोम आदि के परिकर्म पायच्छित्स सुत्ताई के प्रायश्चित्त सूत्र५७०, भिक्खू अण्ण अस्थियास वा, गारस्थियस्स वा वोहाई ५७०, जो भिक्ष अन्यतीथिक या गृहस्ध के उत्तरोष्ठ के लम्बे रोम उत्तरोट-रोमाई (होट के नीचे के लम्बे रोम), कप्पेन्श बा, संठवेन श्रा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, कम्तं वा, संठवेंतं वा साइजन । काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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