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________________ ३४] परणानुयोग निन्य द्वारा निर्जन्यो के केश परिकर्म करवाने का प्रायश्चित्त सत्र सूत्र ५६१-५६४ mmmwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwmmmmmmmmmmmmmmm जे जिग्गन्धे गिग्गन्योए दौहाई पास-रोमाई जो निग्रंथ निग्रन्थी के पात्र के लम्बे रोमों कोअण्णस्थिएण बा, गारथिएणवा, अन्यतीथिक या गृहस्थ से, कम्पावेज वा, संठवावेज वा, कटबावे, सुशोभित करवावे, कापावेतं वा, संडवात वा साहज्जर। कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासिय परिहारहाणं उग्याइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि, उ. १७, सु. ११६-११७ आता है। णिग्गंथेण णिगंथी केसाई परिकम्मकारावणस्स पायनिछन निर्ग्रन्थ द्वारा निर्ग्रन्थी के केश परिकर्म करवाने का प्रायसुत्तं श्चित्त सूत्र-- ५६२. (जेणिग्गन्ये णिग्गंधीए वोहाई केसाई ५६२. (जो निम्रन्थ निग्रन्थी के लम्बे केशों को.अण्णपिएण वा, गारस्थिरण वा, अन्यतीथिक या गृहस्थ से, कप्पावेज वा, संठवावेज वा, कटवाये, सुशोभित करवाने, कप्पात वा, संठवावेतं वा साइजह । बटवाने वाले का, मुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे। सं सेवमाणे आवजह घाउम्मासियं परिहारहाणं उग्याइयं ।) उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १७. सु. ११७ आता है।) णिगंथेग णिगंथी सीसवारियं कारावणस्स पायच्छित्त निर्ग्रन्थ द्वारा निर्ग्रन्थी के मस्तक को ढकवाने का प्राय___ सुत्तं श्चित्त सूत्र५६३. जे णिग्गथे णिग्गन्मीए यामागुगाम बइज्जमा ५६३. जो निम्रन्थ ग्रामानुग्राम जाती हुई निन्थी के मस्तक कोमण्णस्थिएण वा, गारथिएणवा, अन्पतीथिक या गृहस्थ से, सीसवारियं कारावेद, कारावेतं वा साइजह । ढकवाता है, ढकने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे पावज्जइ चाउम्मासिय परिहारहाणं उग्धाइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १७, सु. १२. आता है। अन्यतीथिक के परिकर्म करने के प्रायश्चित्त-६ अण्णउत्थियस्स गारत्यियस्स फायरिकम्मस्स पायमिछस अभ्यतीथिक या गृहस्थ के शरीर परिकर्म का प्रायश्चित्त सुत्ताई सूत्र५६४. जे मिक्खू अण्णउश्यियस्स या गारस्यियस्स या कार्य- ५६४. जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ के शरीर का, आमज्नेज वा, पमज्जेजबा, मार्जन करे, प्रमार्जन करे, मार्जन करवावे, प्रमार्जन करवावे. आमजंतंबा, पमतं वा साहज्जद। मार्जन करने वाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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