SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८. घरणानुयोग निर्ग्रन्थ द्वारा निग्रंग्यो के बघा आदि के रोमों का परिकर्भ करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ५५५-५५६ णिग्गयेण णिग्गंथी जंघाइरोमाणं परिकम्मकारायणरस निग्रन्थ द्वारा निर्ग्रन्थी के जंधा आदि के रोमों का परिकर्म पायच्छित्त सुत्ताई करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र५५५. जे णिये णियोए वोहाई जंधरोमाई ५५५, जो नियन्य निर्मन्थी के जंघा (पिण्डली) के लम्मे रोमों कोअण्णउत्थिएगवा, गारथिएण बा, भन्वतीथिक या गृहस्थ से, कप्पविज वा, संठवावेज्ज वा, पटवावे, सुशोभित करवाये, कप्पावेतं वा, संठवावेतं वा साइजद । कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे। जे णिग्गथे णिगयीए बीहाई कक्खरोमाई-- जो निर्ग्रन्थ निर्मन्थी के बगल (कांख) के लम्बे रोमों कोअग्ण उरियएण वा, गारपिएण वा, अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से, कम्पावेज वा, संठयावेज वा. करताये, मुशोभित करवाये, कप्पायत वा, संठवावेतं पा साइजद । कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे। ने गिमा णिग्थीए वोहाई मसुरोमाई जो निन्ध निर्ग्रन्थी के श्मनु (दाढ़ी मूंछ) के लम्बे रोमों कोमण्णस्यएगा, पारस्थिएण वा, अन्यतीथिक या गृहस्थ से, कापावेज्ज का, संख्यावेज्ज वा, कटवावे, सुशोभित करवावे, कम्पावेतवा, संठवायतका साइज्ज । कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करें। जे णिग्गये जिग्गंधोए बीहार वत्थिरोमाई जो निन्य निन्थी के बस्ति के सम्बे रोमों कोअपरिपएण वा, गारस्थिएण वा, अन्यतोथिक या गृहस्थ से, कप्पावेज्ज वा, संख्यावेज था, कटवाये, सुशोभित करवावे, कप्पावत वा, संठवावेत वा साइजइ । कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे। जे णिगंथे गिगयोए दोहाई चारोमाह जो निग्रंन्य निर्गन्थी के चक्षु के लम्बे रोमों कोअग्ण स्थिएग वा, गारस्थिएण वा, अन्यतीथिक या गृहस्थ से, कापावेज वा, संठवावेज्ज वा, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्पात वा, संठवावेत व साइज्जइ । कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे। सं सेवमाणे आवमह घाउम्मासिय परिहारदाणं उग्घायं। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चिस) —नि उ. १७, सु. ६४-६५ आता है। णिगंथेण णि गंथी ओट्ट परिकम्मकारावणस्स पायच्छित निर्ग्रन्थ द्वारा निर्ग्रन्थी के होठों का परिकर्म करवाने के सत्ताई प्रायश्चित्त सूत्र५.५६. जे णिग्गंथे णिमधीए उ? ५५६. जो निन्य निग्रन्थी के होठों कोअण्णउत्थिएण वा, गारथिएण था, अन्यतीथिक या गृहस्थ से, भामज्जावेज वा, पममावेजा , मार्जन करवावे, प्रमाणन करवावे, आमजमायेंत वा, पमजावेंस या साइजह । मार्जन करवाने वाले का, प्रमार्जन करवाने वाले का अनुमोदन.करे। .
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy