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________________ सूत्र १२-१५ सुब P - बारसंग + सील सुगंधित - सिहरं - नगर रह चक्क परमे जो उवमिन्जर सययं तं धर्मावर संघ गनिपिग णमोकार सुत१४. मोबासंग गरि लिवि णमोक्कार - सुत्त १५. णमो भए लिथीए । श्रुत नमस्कार सूत्र सुयाए पर्णामिमो जीए पसाएम सिक्खियं नाणं । अष्णं पवयणदेवी संतिकरी तं नर्मसामि ॥ ॥ बंबे ॥ भूरे समुद गुणाय रं वंदे ॥ - नं. थ. गा. ४-१९ सुअरस नमोवकार गुसणमो सुअस्स । वि.स.१.१.३ सुदेवया णमोक्कार सुताई १३ नमो देवधाए भगवती । वि. स. १७७.१.१ कुमुय सुसंठियाला अमलिय कोरंटमेंटसंकाला | सुयदेवया भगसई मम मतितिमिरं पणासेउ || - नियतिमिरा वाहिया देवी। यह विणविमादिव्वं ॥ सुदेवाय जो कुंधति मेरो विज्जाय अंतहुंडी देउ अविग्वं लिहंतस्स ॥ — वि. अंतिमसु श्रुत नमस्कार सूत्र - श्रुत को नमस्कार हो। गुण रूप रत्नों से उज्ज्वल कटक- मध्य भाग वाले, शीलरुग एवं भूमि वाले श्रुतरूप शिखर वाले उस संघ महामन्दर को वन्दन करता हूँ । नगर, रथ, चक्र, पद्म, चन्द्र, सूर्य, समुद्र, और मेरु की जिसे उपमा की जाती है उस संघ गुणांकर को चन्द्रना करता हूँ । भूतदेवता नमस्कार सूत्र भगवती श्रुतदेवता को नमस्कार हो । कछुआ की तरह सुन्दर चरण कमल वाली, निर्मल कोरंट वृक्ष की कली के समान पूज्य श्रुतदेवी मेरे मति अज्ञान का नाश करो - मंगल सूत्र जिसके हाथ में विकसित कमल हैं और बुध पंडित, विबुध देवों ने जिन्हें हमेशा नमस्कार किये हैं ऐसी ता धिष्ठित देवी मुझे वृद्धि अर्पित करो। तदेवता को प्रणाम करता हैं, जिनकी कृपा से ज्ञान सीखा है और इसके अतिरिक्त शान्ति करने वाली प्रवचनदेवी को भी मेरा नमस्कार हो । पिटक नमस्कार सूत्र द्वादशांग गणिटिव को नमस्कार हो । [ ६ श्रुतदेवता, कुम्भर यक्ष, ब्रह्मशान्ति वैरोट्या, विद्या और अंडी विश्वन करने वाले को निविघ्न करो। Nove - लिपि नमस्कार सूत्र - ब्राह्मी लिपि को नमस्कार हो । वि. अंतिमत - बि. स. १, उ. १, सु. १ ११. नगर, २. रख दे. चक्र, ४ प ५. चन्द्र, ६. सूर्य ७ समुद्र की प्रतिष्ठा का द्योतक है। यहाँ अध्यात्म साधकों का संघ उपमेय है। गुणों की प्रतिष्ठा होना आवश्यक बताया गया है जिनसे साधक साधना २ भग. स. २६.१, सु. १ । ३ ब्राह्मी लिपि को नमस्कार - क्यों और कैसे ? अक्षर विन्यामरूप अर्थात् लिपिबद्ध श्रुत द्रव्ययुक्त है. लिखे जाने वाले अक्षरसमूह का नाम लिपि है। भगवान ऋषभदेव अपनी पृथ्वी बाह्मी को दाहिने हाथ से लिखने के रूप में जो लिखाई, यह बाह्मी लिपि कहलाती है। बालको नमस्कार करने के सम्बन्ध में तीन प्रश्न उठते हैं - मे यह उपगा अष्टक मानव में महामानव श्रेष्ठतम उपमानों द्वारा संघ में उन रात्र अनिवार्य में सहज सिद्धि को प्राप्त हो सकता है। (१) लिपि अक्षरस्थापनारूप होने से उसे नमस्कार करना द्रव्यमंगल है, जो कि एकान्त मंगलरूप न होने से यहाँ कैसे उपादेय हो सकता है ? (२) गणधरों ने को लिपिड नहीं किया, ऐसी में उन्होंने पि को नमस्कार क्यों किया ?
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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