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वरणानुयोग
संघ स्तुति
सूत्र १२
(३) संघस्स रहोबमा-
(३) संघ को रथ की उपमाभवं सील-पडागूसियस्त सव-नियम-तुरम-जुत्तस्स । तप-नियमरूप तरंगों से युक्त, शालरूप पताका से उन्नत संघरहस्स भगवओ समाय-सुनंदिघोसस्स। और स्वाध्याय रूप नंदि-मंगलघोष वाला भगवान "संघ-रथ"
कल्याणप्रद हैं। (४) संघस्स पजमोवमा--
(४) संघ को कमल की उपमाकम्म-रव-जलोह-विणिग्गयस्स सुध-रयण-दीह-नालस्म । ध्रुत-रत्नरूप दीर्घ नाल पाले, कर्म-रज रूप जल से बाहर
महत्वयनायर-काण्णयस्स गुण-केसरासस्स ॥ निकले हुए पंचमहाव्रत रूप स्थिर कणिका वाले, गुण रूप केसर सावग-जण-मन्वअर-परिवुद्धस्स जिण-सुर-सेय-बबस्स। बाले, श्रावक जनरूप मधुकरों से घिरे हुए जिनरूप सूर्य के तेज संघ-पजमस्स मददं समण-गण-सहस्स-पत्तस्स ।। से बुद्ध-विकसित, श्रमण-गण रूप सहस्र पन वाले "संघ-पदम"
कल्याणप्रद हो । (५) संघस्स चोवमा
(५) संघ को चन्द्र की उपमातथ-संजम-मय-संछण ! अकिरिय-राह-मूह-दुरिस। णिच्चं। अक्रियावाद प राहु के मुख में अग्राह्य, विशुद्ध सम्यक्त्व जय संघचंद! निम्मल सम्मसयिसुखजोपहाया ! ॥ रूप ज्योत्स्ना-चन्द्रिका बाले "हे संघ-चन्द्र !" तेरी जय हो । (१) संघम्स सूरोवमा
(६) संघ को सूर्य की उपमापर-तित्थिय-गह पह-नासगस्स तवन्तेय-वित्त-लेसस्स । तपस्तेज रूप प्रदीप्त लेश्व-कान्ति वाले, जाम रूप उद्योत नाणुज्जोयस्स जए भवं दम-संध-सुरस्स ॥ वाले, गर-तीथिकरूप ग्रहों की प्रभा को नाश करने वाले, दम
प्रधान संघ-सूर्य' इस जगत में कल्याणकारी हो । (७) संघस्स समुद्धोवमा--
(७) संघ को समुद्र की उपमाभद्रं ! धिइबेलापारिगयस्स समाय-जोग-मगरस्स। धृतिरूप बेला से घिरे हुए, स्वाध्याय तथा शुभयोगरूप अक्ष्योहस्स भगवओ संघसमुहस्स एन्वस्स ॥ मगरों से युक्त परीषह और उपसर्गों में अक्षुब्ध, सर्व ऐश्वर्य
युक्त भगवान "संघ-समुद्र" कल्याणकारी हो। (८) संघस्स मेरुवमा --
(८) संघ को मेरु की उपमासम्मबंसण - वर - बहरदढ - रूद - गाढावगाढ - पेढस्स। सम्यक्त्वरूप श्रेष्ट वज्रमय हद महरी रोपी हुई पीठिका धम्म - वर - रयण - मंडियत्रामीयर - मेहलागस्स ॥ वाले, धर्म रूप श्रेष्ठ रत्नों से मंडित-जड़ी हुई मेखला वाले । नियभूसिय - कणय - सिलायलुज्जल - जलंत - चित्सकहस्स। नियम रूपी ऊँची-ऊंची शिलाओं से उज्ज्वल एवं ज्वलंत नंबण - वर्ण - मणहर मुरभि - सील - गंधुद्धमायस्स ॥ चित्तरूप कूट शिखर वाले, भीलरूप सुगन्धित धूम से भारत
नन्दन वन वाले। जीब - दया - मुन्धर - कंवरुदरिय • मुणिवर-मइंव-इनस्स। जीवदयारूप सुन्दर कन्दराओं में उदिप्त-स्वाभिमानी हेउ सय - धाउ • पगलंत - रयण - दिलोसहिगुहस्स॥ नाना मुनिवररूप मृगेन्द्रों वाले, सैकड़ों हेतु रूप धातुओं से
भरती हुई दिव्य भावकर ओषधिरत्नबाली गुफाबाले । संबर-बर - जल - पगलिय- उज्नर - पविरायमाण - हारस्स। संवररूप बहती हुई श्रेष्ठ जलधारा से सुशोभित झरणों सावग - जण - पउर - - रवंत - मोर - नच्चंत - कुहरस्स ॥ वाले, प्रचुर श्रावकरूप बोलते व नाचते हुए मयूरों बाली
फन्दरा वाले। बिगय - मयप्पवर-मुणियर - फुरंत - विजुण्जलंत -सिहरस्स। विनयावनत प्रवर मुनिवररूप चमकती हुई बिजली से विविह-गण-कप्प-रुक्खग - फल • भर - कुसुमाउल - वणस्स ॥ आलोकित शिखरवाले, विविध गुण रूप पुष्पफलयुक्त कल्पवृक्ष
वाले। नाण-बर-रयण - विप्पंत - कंत - कलिय - विमल - चूलस्स। ज्ञानरूप श्रेष्ठ रत्नों से देदीप्यमान कांत बंडूपमय बिमल बंदामि विणय - पणओ संघ - महामवर - गिरिस्स ।। ला-शिखर वाले, संवरूप-महामंदर गिरि को वन्दना
करता हूँ।