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________________ निन्थी द्वारा निर्ग्रन्य की आँखों का परिकर्म करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र चारित्राचार (३७५ जा णिगंथी जिगंथस्स बतेअण्णउत्यिएण वा, गाररियएग वा फूमाखेज वा, रयावेज्ज वा, फूमावेत वा, रयायतं वा साइज्जन । जो निग्रन्थी निर्ग्रन्थ के दांतों कोअन्यतीथिक या गृहस्थ से, रंगवावे, बार-बार रंगवावे, रंगवाने वाली का, बार-बार रंगवाने वाली का अनुमोदन तं सेवमाणे आवज पाउम्मासि परिहारदाणं उग्धाइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -- नि. उ. १७, सु. ४६-४८ आता है। णिगंथिणा जिग्गंध अच्छो परिकम्मकारावणस्स निग्रंन्थी द्वारा निर्ग्रन्थ की आँखों का परिकर्म करवाने के पायच्छित्त सुत्ताई प्रायश्चित्त सूत्र५४६. जाणिग्गंधी णिगंयस्स अच्छीणि ५४६. जो निग्रन्थी निन्थ की आँखों काअगाउथिएण वा, गारथिएण वा, अन्यतीथिक या गुहस्थ से. आमज्जावेज्ज वा, पमज्जावेज्म था, मार्जन करवावे, प्रमार्जन करवावे, आमम्जावत वा, पमज्जावेत या साइजह । मार्जन करवाने वाली का, प्रमार्जन करवाने वाली का अन मोदन करे। जाणिग्गंयो गिगांधस अच्छोणि जो निर्ग्रन्थी निग्रन्थ की आँखों काअण्णस्थिएच वा, गारथिएण का, अन्यतीथिक या गुहस्य से, संबाहावेज वा, पलिमदावेज्ज वा, मदन करवावे, प्रमर्दन करवावे, संबाहावेत वा, पलिमहावेत वा साइज्जइ । मर्दन करवाने वाली का, प्रमर्दन करवाने वाली का अनुमोदन करे। जाणिग्गंधी णिय स्स अच्छोणिमाणउथिएण था, गारस्थिएण वा, तेल्लेण वा-जावणवणीएण पा, मक्खावेज्ज वा, मिलिंगावेज वा, मरखावतं या, मिलिंगावेत वा साइजह। जो निम्रन्थी नियन्य की आँखों परअन्यतीर्थिक या गृहस्य से, तेल-पावत्-मापन, मलबावे, ब.र-बार मलवावे, मलवाने वाली का, बार-बार मलवाने वाली का अनुमोदन जा णिग्गयी णिगंथस्स अच्छोणिअपरिधएगवा, गारस्थिएण वा, लोण वा-जाव-बण्णेण वा, उल्लोलावेज्ज वा, उच्वट्टावेज्ज वा, उरुलोलायत बा, उन्वट्टायेंतं वा साइज्जव । मा गिरगंथी णिग्मयस्स अच्छोणिअन्नदथिएन वा, गारस्थिएम बा, सीप्रोदग-वियोण वा, उसिणोरग-वियरंग या, उसछोलावेज्ज बा, पप्लोयावेज्ज वा, उच्छोसावेत वा, पोयावेत वा साइज्जइ । जो निग्रंथी नियन्य की आंखों परअन्यतीथिक या गृहस्थ से, लोध,-यावत-वर्ग का, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे, उबटन करवाने वाली का, बार-बार उबटन करवाने वाली का अनुमोदन करें। जो निग्रन्थी निग्रंथ की आँखों कोअन्यतीथिक या गृहस्थ से अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, धुलवावे, बार-बार धुलवाये, धुलवाने वाली का, बार-बार शुलवाने वाली का अनुमोदन करे। जो निन्थी निर्ग्रन्थ की आँखों कोअन्यतीथिक या गृहस्थ से, जा णिगंधी गियरस अच्छोणिअगस्थिएण वा, गारथिए, बा,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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