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________________ ३७२ ] चरणानुयोग निधी द्वारा निभ्थ के नखानों का परिकर्म करवाने का प्राथस्थित सूत्र सूत्र ५४०-५४२ जा रिगंथी णिग्गंथत्स पाये - अनउत्थिन वा वारणा सोओग विपण वा उसिणोषण विद्वेण मा, उच्छोलवेज्ज वा, पघोषावेज्ज वा उच्छोलायत वा पोयावेत या साइज्जइ । जा णिम्बी णिमांस पावेएवा वारयिएम वा फूमावेवा, रावेन्ज बा, कुमाल वा रथावत वा साइ तं सेवमाने आवज्ज वाउम्मरसियं परिहारद्वाणं उग्धाइयं । - नि. उ. १७, सु. १५-२० णिमिणा विग्गंध महसिहा परिकम्पकारावणस्स पायच्छित मुत्तं ५४१. जागिंधी दिनाना अष्णउत्रिन पा. गारथिए वा प्यावे या संवा कपात वा संजातं वा साइज । तं सेवमाणे आवज्जइ चाउमा सियं परिहारद्वरणं जग्धाइ । - नि. उ. १७, सु. ४० णिग्गंथिणा णिग्गंथ जंघाड़ रोमाणं परिकम्मकारावणस्स पायच्छित मुताई २४२.विंदा जंघई अण्णउथिएण था, गारत्थिएण वा कप्पवेज्ज वा, संठया वेज्ज या, कप्परयेतं वा, संठवावेत या साइज्जइ । जाग्दो नियम हाई अण्णउस्थिरण वा गारस्थिएण वा कल्पवेज्ज वा संठवावेज्ज या, कम्पावत था, समावेतं वा साइज । बागांची निग्धा बहाई मंसुरीमाई भण्डस्थिएन वा गारस्थिण था, होनी निर्णय के पैरों कोअन्यतीधिक या गृहस्थ से अचित शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, लाने वार-बार घुलवावे, धुलवाने वाली का, बार-बार धुलवाने वाली का अनुमोदन करे । जो निधि के पैरों को अन्यतीचिक या यूहर में, रंगवावे, बार-बार रंगवावे, रंगवाने वाली का बार-बार रंगवाने वालो का अनुमोदन करे । उसे चातुर्मास उद्घाटिक परिहारस्थान (आय) आता है नियंन्धी द्वारा निर्धन्य के नखाओं का परिकर्म करवाने का प्रायश्चित्त सूत्र ५४१. जोन के लम्बे सायों को अन्मतीर्थिक या गृहस्थ से, कटवावे, सुशोभित करवाने, कटवाने वाली का, सुशोभित करवाने वाली का अनुमोदन करे । उसे चातुर्मासिक उद्भाविक परिहारस्थान (आय) आता है । नियंन्थी द्वारा निर्ग्रन्थ के जंघादि के रोमों का परिकर्म करवाने के प्रायश्चित सूत्र- ५४२. जो निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थ के जंबा (पिण्डली) के लम्बे रोमों को अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से, नावे करावे, कटवाने वाली का, सुशोभित करवाने वाली का अनुमोदन करे । जो निर्ग्रन्थ नित्य के बगल (कास) के लम्बे रोमों कोकिया गुस्से कटनाये होभित करवाने, कटवाने वाली का, सुशोभित करवाने वाली का अनुमोदन फरे । जो निर्मन्थी निभ्थ के श्मश्रु (दाढ़ी मूंछ ) के लम्बे रोमों अत्यधिक या गृहस्थ से, J
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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