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________________ सत्र ५३९-५४० निग्रन्थी द्वारा निर्धग्य का मत निकलवाने के प्रायश्चित्त सूब चारित्राचार (३०१ णिमाथिणा णिग्गंथ अच्छी आईणं मल-णीहरावणस्स निर्गन्थी द्वारा निर्ग्रन्थ का मैल निकलवाने के प्रायश्चित्त पायपिछत्त सुत्ताई५३६. जा गिरगंथी गिगंधस्स ५३६. जो निम्रन्थी निर्ग्रन्थ केअच्छिमलं वा, कण्णमल बा, तमलं या, नहमले बा, आँखों के मन को, कान के मैल को, चौत के मैल को, नख अण्ण उत्थिएष वा, गारस्थिएण वा, के मल को, अन्यतीथिक या गृहस्थ से, नीहररावेज्ज था, चिसोहावेज वा, दूर करवावे, गोधन करवावे, नोहरावेतं वा, विसोहावेतं वा साइजा। दूर करवाने वाली का, शोधन करवाने वाली का अनुमोदन करे। जाणिगंथी णिगंधस्स जो निर्गन्धी निर्ग्रन्थ केका से का, सपा, पंस, भस्म का, स्वेद (पसीना) को, जल्ल (जमा हुआ मैल) को, पंक (लगा हुआ कीचड़) को, मल्ल (लगी हुई रज) को, अग्गरथएक वा, गारस्थिएण या, अन्यतीथिक या गृहस्थ से, नौहरावेज वा, विसोहावेज्ज वा, दूर करावे, शोधन करावे, नौहरायतं वा, विसोहावेत वा साइज्जा । दूर करवाने वाली का, शोधन करवाने वाली का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे प्रापज्जा बाजम्मासियं परिहारट्ठामं घाइयं। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) --नि. उ. १७, सु. ६५-६६ आता है। हिरगंथिणा णिग्गय पायपरिकम्मकारावणस्स पायच्छित निर्ग्रन्थी द्वारा निर्ग्रन्थ के पैरों का परिकर्म करवाने के सुत्ताई प्रायश्चित्त सूत्र५४०. जा पिगंधी जिग्गंपस्स पाये ५४५, जो निर्ग्रन्थी निग्रंथ के पैर का:अण्णस्थिएण वा, गारस्थिएण वा, अन्यतीथिक या गृहस्थ से, आमज्जावेज्ज वा, पमावेज्ज वा, भाजन करवावे, प्रमार्जन करवावे, आमज्जातंभा, समजायसं वा साइबर । मार्जन करवाने वाली का, प्रमार्जन करवाने वाली का अनु मोदन करे। जा णिगंयो गिगांयस पावे जो निन्थी निर्ग्रन्थ के पैर का--- अगस्थिरण वा, गारस्यएग. या, अन्यतीधिक या गृहस्थ से, संबाहावेज्ज वा, पलिमहावेज्ज वा, मदन करवावे, प्रमर्दन करवावे, संबाहात वा, पलिमद्दावेतं वा साइजह । मदन करवाने वाली का, प्रमदंन करवाने वाली का अनुमोदन जा मिमांधी शिगंधस्स पावेअग्गरस्थिएणवा, गारस्थिएण वा, तेस्लेण वा आव-पपणीएणवा, मरवावेज वा, मिलिंगावेज वा, मरवायत बा, मिलिंगावेत या साइम्जा। जो निग्रंन्थी निर्ग्रन्थ के पर परअन्यतीथिक या गृहस्थ से, तेल-सात-मक्खन, मलवावे, बार-बार मलवावे, मलवाने वाली का, बार-बार मलवाने वाली का अनुमोदन करे। जा जिगंपी विगंचस्स पादे-- मपणउलिएग वा, गारपिएममा, लोग वा-जाव-वालेण वा, उस्लोलावेज मा, उबट्टावावा, जल्लोलावेंत वा, उपहावेतं या साइज्जा । जो निर्गन्धी निर्ग्रन्थ के पैरों पर--- अन्यतीथिक या गृहस्थ से, लोध कायावत्-वर्ण का, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवाने, उबटन करवाने वासी का, बार-बार उबटन करवाने वाली का अनुमोदन करे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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