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________________ ३७०] वरणामुयोग निग्रंथी द्वारा मिश्रन्य के शारीरिक परिकर्म करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र १५८ अन्यतीथिकादि द्वारा निर्ग्रन्थी-निम्रन्थ के प्रायश्चित---४ सुत्ताई णिग्गथिण, सिकाय- कामासायछिद निग्थी द्वारा निग्रंथ के शारीरिक परिकर्म करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र - ५३८. जाणिगयी जिग्गंथस्स कार्य ५३८. जो निन्यो निग्रन्थ के पारीर को-- अण्णास्थिएण वा, गारस्थिएण वा. अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से, मामजावेज वा. पमज्जावेज्मा , माजन करवाने, प्रमाणन करवावे, आमज्जावेतं पा, पमज्जातं या साइज्जा । मार्जन करवाने वाली का, प्रमार्जन करवाने वाली का अनु मोदन करे। जाणिगंथी पिगंधस्स कार्य जो निर्गन्धी निर्ग्रन्थ के पारीर कोअण्ण उस्थिएण बा, गारस्थि एग वा, अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से, संबाहावेज वा, पलिमद्दावेज्ज या, मदन करवावे, प्रमर्दन करवावे, संवाहायतं वा, पलिमहावेतं वा साहबर। मर्दन करवाने वाली का, प्रमर्दन करवाने वाली का अनु मोदन करे। जा गिग्गयो णिगंथस्स कायं-- जो निग्रंन्थी निन्य के शरीर कोअवमाउस्थिएण वा, गाररियएण वा, अन्यतीथिक या गृहस्य से, तेल्लेण वा-जाव-णवणोएण वा, तेल-यावत् - मक्खन, मवावेज्ज वा, मिसिंगावेज्ज था, मलवावे, बार-बार मलयावे, मसावेत वा, मिलिंगावेतं वा साइजह । मलवाने वाली का, बार-बार मलवाने वाली का अनुमोदन करे। जा णिग्गंधी गिगंधस्स कार्य --- अण्णस्थिएण वा, गारस्थिएण था, लोणवा-जाव-वाणण वा, चल्लोलावेज्ज पा, उम्बट्टावेज वा, उहलोलात था, उध्वट्टावेतं वा साइज्जद । जा गिग्गंधी णिगंपस्स कार्यअण्णउतिथएण वा, गारस्थिएग वा, सीओवग-वियोण वा, उसिणोवग-वियोग वा, उमछोलावेज्ज वा, पक्षोयावेज्ज वा उन्छोलावेतं वा, पधोयावेस वा साइजह । जो निग्रन्थी निर्गन्ध के शरीर कोअन्यतीपिक या गृहस्थ से, लोध,-यावत्-वर्ण का, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे, उबटन करवाने वाली का, बार-बार उबटन करवाने वाली का अनुमोदन करे। जो निग्रन्थी निग्रंन्य के शरीर कोअन्यलीथिक या गृहस्थ से, अचित्त शीत जल से या अपित्त उष्ण जल से, धुलवावे, बार-बार धुलवावे, धुलवाने वाली का, बार-बार धुलवाने वाली का अनुमोदन करें। जो निर्मन्थी निर्गन्ध के शरीर कोअन्यतीभिक या गृहस्थ से, रंगवावे, बार-बार रंगवावे, रंगदाने वाली का, बार-बार रंगवाने वाली का अनुमोदन करे। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। जाणिगंधी मिथस्स कार्यअपरिषएण वा, गारस्थिएग पा, फूमावेज्ज वा, रयावेज्न वा, फूमावेत या, रमावेत या साइम्जा । सं सेवमाणे आवमा चाउम्मासियं परिहारहाणं अधाइयं। -नि. उ. १७, सु. २१-२६
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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