SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 402
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र ५३५-५३७ perior था, संवावेन्ज या, कप्पातं वा संठवावेतं वा साइज । भौहों आदि के रोगों का परिकर्म करवाने के प्रायश्चित सूत्र ान मुमगरोमा परिकम्भकारायणस्स पायच्छित सुत्ता भौंहों आदि के रोगों का परिकर्म करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र- ५३५. के भिक्खु अण्णउत्थिएक वा, गारस्थिएण वा अत्यणो दोहाई ५३५. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक से या गृहस्थ से अपने भौंहों के लंबे मगरीगाई पीमों को - जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा, गारस्थिएण वा अप्पणो वीहाई पासरोमाई eeपवेज्ज बा, संतवावे वा कपास वा संठवावेंतं वा साइन्न । तं सेवमाने आवज चाउम्मासियं परिहारद्वाणं उग्धायं । - नि. उ. १५, सु. ६१-६२ केस - परिकम्मकारावणस्स पार्याच्छित सुतं कप्पाबेज्ज वा संठवावेज्ज पा कम्पावत वा संवायेतं वा साइज्ड । तं सेवमाणे आवज्जड वाजम्मा सियं परिहारद्वाणं जग्मायं । -- नि. उ. १५, सु. ६२ सोमवारिय कारावणस्स पायति-५३७. जे शिक्षण थिएण वा, गारस्थिएण वा गामश्णुगामं वृक्षमाणे अप्पणी सीसवारिय काराकारास यासार तं सेवमाणे वचाउम्मानयं परिहारद्वाणं उत्पाद नि. उ १५, सु. ६५ कटवावे सुशोभित करावे, कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन म.रे । रोमों को [e भिक्षु असे या मुहस्य से अपने पायं के लम्बे ― कटवावे, सुशोभित करवावे, कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे । उसे चातुर्मासिक उधातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है । केश परिकर्म करवाने का प्रायश्चित सूत्र ५३६. जे भिक्खू अण्णउत्थिएक वा. गारत्थिएण वा अप्पणी दोहा ४३६. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक से या गृहस्थ से अपने लम्बे केशों को - देसाई - 珊瑚 कटवावे सुशोभित करवावे, कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त) आता है। मस्तक ढकवाने का प्रायश्चित्त सूत्र ५३७. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक से या गृहस्थ से ग्रामानुग्राम जाता हुवा अपने मस्तिष्क को वाता है, ढकने वाले का अनुमोदन करता है। उसे चातुर्मासिक उद्घाटिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित ) आता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy