SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६.] चरणानुयोग आँखों का परिकर्म करवाने का प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ५३३-५३४ - - - - - - --- - . . त सेवमाणे आपज्जा खाउम्मासियं परिहारदाणं उग्घाइय। उसे पातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. ४४-४६ आता है। अच्छीपरिकम्मकारावणस्स पायच्छित्त सत्ताई आँखों का परिकर्म करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र५३३. जे भिक्खू मण्णउस्थिएण बा, पारस्थिएण वा अप्पणो ५३३. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक से या गृहस्थ से अपनी आँखो का अच्छीणिआमजावेज्ज वा, पमज्जावेज्ज वा, माजन करवाये, प्रमार्जन करवावे, आमज्जावेत वा, पमज्जातं वा साइजह । मार्जन करवाने वाले का, प्रमार्जन करवाने वाले का अनु मोदन करे। जे भिक्य अण्णस्थिएण घा, गारथिएण वा अपणो अच्छोणि- जो भिक्षु अन्यतीधिक से या गृहस्थ से अपनी आँखों कासंबाहावेज्ज वा, पलिमद्दावेज्ज वा, मदन करवावे, प्रमर्दन करयावे, संबाहावेत या, पलिमहावतं वा साइजह । मर्दन करवाने वाले का, प्रमर्दन करवाने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू मण्णथिएण वा, गारस्थिएण या अपणो अच्छीणि- जो भिक्षु अन्यतीधिक से या गृहस्थ से अपनी आँखों पर-- तेल्लेग वा-जाव-गवणीएण वा, तेल,-यावत्-मक्खन, मक्माबेज्ज वा, भिलिगावेज्ज वा, मलवाने, बार-बार मलवावे. मक्खावेत घा, मिलिगातं वा साइज्जह । मलनाने वाले का, बार-बार मलवाने वाले का अनुमोपन करें । जे भिक्षु अण्णथिएण या, गारस्थिएणना अप्पणो अच्छीणि- जो भिक्षु अन्यतीधिक से या गृहस्थ से अपनी आँखों पर ... लोण पा-जाव-वणे, वा, लोध, यावत्-- वर्ण का, उल्लोलावेज वा, जन्यट्टावेज वा, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे, जल्लोलायेंतं वा, उम्वट्टावत वा साइज्जई। उबटन करवाने वाले वा, वार-बार उबटन करवाने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्ख अग्णस्थिरण दा. गास्थिएण या अप्पणो अमछोणि- जो भिक्षु अन्यतीथिक से या गृहस्थ से अपनी आँखों कासीओग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा, अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, उक्छोलावेज्ज वा, पोयावेज वा, धुलवावे, वार-बार ध्रुसवावे, उच्छोसावेत का, पद्योगायतं वा साइज्जद धुलवाने वाले का, बार-बार धुलवाने वाले का अनुमोदन करे । जे भिषण अण्णउस्थिएण वा, गारथिएण वा अप्पणो अच्छोणि- जो भिक्षु अन्यतीर्थिक से या गृहस्थ से अपनी आँखों कोफूमावेज का, रयावेज था, रंगवावे, बार-बार रंगवावे, फूमात वा, रयायेतं वा साइजह । रंगवाने वाले का, बार-बार रंगवाने वाले का अनुमोदन करे। त सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासिय परिहारहाणं उग्धाइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. ५५-६. आता है। अच्छीपत्त-परिफम्म कारावणस्स पायच्छित्त सुत्तं - अक्षीपत्रों के परिकर्म करवाने का प्रायश्चित्त सूत्र५३४. जे मिक्यू अण्णउथिएण वा, गारथिएण या अप्पणो दोहाई ५३४. जो भिक्षु अन्यतीधिक से या गृहस्थ से अपने लम्बे अक्षिअच्छीपत्ताई पत्रों कोकरपावेज या, संठयावेज वा, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्यावेतवा, संठवायेंतं वा साइज्जइ । कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे आवग्जइ उम्मासियं परिहारहाणं वग्याइयं । -नि.उ.१५, सु. ५४ उसे चातुर्मासिक पदातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy