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________________ ३६६] घरगानुयोग होठों का परिकर्म करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र सत्र ५२६-५३० कम्पावेज वा, संठवावेज वा, कप्पावतं वा. संठवावेतं वा साइजर मे भिक्खू अण्णथिएण वा, गारस्थिएण वा बीहाई मंसु- रोमाई---- कापावेज वा, संठवावेज्ज वा, कप्पावेतं या, संठबावतं या साइजद । कटवावे, सुशोभित करवावे, करवाने वाले का, मुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्ष अन्यतीथिक से या गृहस्थ से श्मश्रु (दाढ़ी मूंछ) के लम्बे रोमों को फटकाव, सुशोभित करवाये, कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन जे भिक्खू अस्थिरण वा, गारस्थिएण वा हाई बरिय- जो भिक्ष अन्यतीर्थिक से या गृहस्थ से बस्ति के लम्बे रोमों रोमाई कोकप्पावेज वा, संठवायेज्ज वा, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्पावत बा, संठवावेत वा साइज्जा । कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्ख अण्णउथिएवा, गाररियएण वा दोहाई चक्षु जो भिक्ष, अन्यतीथिक से या गृहस्थ से लम्बे चक्ष रोमों रोमाई.. कप्पावेज का, संठवावेज्ज वा, कटवावे, सुशोभित करवावे, कम्पावेतं था, संठवावेत व साइजद । कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे पावसह चाउम्मासियं परिहारद्वाणं उमघाइयं। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायभिचस) --नि.उ. १५, सु. ३६-४३ आता है। ओट परिकम्मकारावणस्स पायच्छित्त सुत्ताई- होठों का परिकर्म करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र५३०, जे मिक्खू अण्णउस्थिएण वा, गारपिएगा अपणो ज?- ५३०.जो भिक्ष अन्यतीथिक से या गृहस्थ से अपने होठों काआमज्जावेज वा, पमज्जावेज्ज वा, मार्जन करवावे, प्रमार्जन करवावे, आमज्जावेतं वा, पमज्जावेत या साइन्जद । मान करवाने वाले का, प्रमार्जन करवाने वाले का अनु मोदन करे। जे भिक्खू अग्णउत्थिएण या, गारस्थिएण वा अपणो उ- जो भिक्षु अन्यतीधिक से श गृहस्थ से अपने होठों कासंबाहावेज वा, पलिमहावेज वा, मर्दन करवावे, प्रमर्दन करवावे, संबाहात बा, पलिमहावेतं वा साइजह । ___ मर्दन करवाने वाले का, प्रमर्दन करवाने वाले का अनुमोदन करे। मिक्ख अण्णस्थिएण वा, गारस्थिएग वा अप्पणो ?- जो भिक्षु अत्यतीधिक से या गृहस्थ से अपने होठों कोतेल्लेण वा-जाव-गवणीएण का, सेल-यावत्-मक्खन, मक्खावेज्म वा, मिलिंगावेज वा, मलवावे, बार-बार मलवावे, मक्खावेंवा, मिलियास या साइमह । मलवाने वाले का, बार-बार मलवाने वाले का अनुमोदन करे। मे भिक्खू अण्णउत्पिएण वा, गारत्पिएणमा अप्पगो उट्ट- जो भिक्षु अन्यतीर्थिक से या गृहस्थ से अपने होठों परलोरण वा-जाव-बग्गेण वा, लोप पावत्-वर्ण का, उस्लोलावेज्ज वा, उज्वट्टावेल वा, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे, उल्लोसावेत वा, उज्वट्टाउत वा साइजाइ । उबदन करवाने वाले का, बार-बार उबटन' करवाने वाले का अनुमोदन करे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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