SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र ५२७.५२६ नखान परिकर्म करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र बारित्राचार ३६५ संवाहात वा, पलिमहावेत या साइजह । जे भिक्ख अण्णउत्थिएणवा, गारथिएण या अपणो पावेसेस्लेण वा-जाव-णवणीएण वा, मवक्षावेज्ज वा, भिलगावेज वा, मक्खात वा, भिलिंगावेतं वा साइज्जह । मर्दन करवाने वाले का, प्रमर्दन करवाने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अन्यतीथिक से या गृहस्थ से अपने पैरों कोतेल-पावद-मक्खन, मतवादे, बार-बार मलवावे, मलवाने वाले का, बार-बार मलवाने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू अगाउथिएण वा, गारथिएण या अपणो पावे- जो भिक्ष अन्यतीर्थिक से था गृहस्थ से अपने पैरों कोलोण वा-जान-वणेग वा, लोध-यावत्- वर्ण का, उल्लोलावेज्म या, उस्वट्टावेज वा, उबटन करवावे, बार-बार उबदन करवावं, जलसात बा, स्वायतरा साह । उबटन करवाने वाले का, बार-बार उबटन करवाने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्यू अण्णउत्थिएण बा, गारथिएण वा अप्पणो पावे- जो भिक्ष अन्यतीषिक से या गृहस्थ से अपने पैरों कोसोओषग-वियोण वा, उसिप्पोदरा-षियण वा, अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण बल से, उन्छोलावेज्ज वा, पोयावेज्ज वा, धुलवावे, बार-बार धुलवाने, उच्छोलावतं वा, पधोयावेत वा साइजा। घुलवाने वाले का, बार-बार धुलवाने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू अण्णवस्थिएणया, गारत्यिएण वा अप्पणो पादे- जो भिक्षु अन्यतीर्थिक से या गृहस्थ से अपने पैरों कोफूभावेज्जा.बा, रयरवेज वा, . रंगवावे, बार-बार रंगवावे, फूमावतं वा, रयावत वा साइज्जद । __ रंगवाने वाले का, बार-बार रंगवाने वाले का अनुमोदन करे। तं सेवामागे आवज्जा वाचम्मापिय परिहारहाणं उग्याइयं । उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) - नि. उ. १५, सु. १३-३८ आता है। णहसीहाए परिकम्मकारायणण्स पायच्छित सुत्त- नखान परिकर्म करवाने का प्रायश्चित्त सूत्र५२८. जे मिक्खू अण्ण उत्यिएण वा, गारथिएण वा बोहाओ नह- ५२८. जो भिक्ष अन्यतीथिक से या गृहस्थ से लंबे नखानों को सिहाओकप्पावेज वा, संठवावेज वा, कटवावे, सुशोभित करवाई, कप्पार्वतं था, संठवावेत या साइज्जइ । कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करे । तं सेवमाणे आवाजइ चाउम्मासियं परिहारद्वाणं उग्याइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. ३८ आता है। अंघाइरोमाण परिकम्मकारावणस्स पायच्छित्त सुत्साई-- जंघादि के रोमों का परिकर्म करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र५२६.जे भिखू अण्णउत्यिएण वा, गारथिएण वा बीहाई जंध- ५२६. जो भिक्ष अन्यतीथिक से या गृहस्य से जंघा (पिण्डली) के रोमाई लम्बे रोमों कोकापावेज्ज बा, संठवावेज वा, .. कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्पावेतं वा, संठवावेत वा साहज्जद । कटवाने वाले का, सुशोभित करवाने वाले का अनुमोदन करें। जे भिक्खू अण्णउत्यिएण वा, गारस्थिएष वा योहाई घरख- जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ से बगल (कांख) के लम्बे रोमाई-- . रोमों को
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy