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________________ सौ ५२३-५२५ एक दूसरे के केशों के परिकर्म का प्रायश्चित सूत्र चारित्राचार ३३ कप्पेतं वा, संठत वा साइल्जा। काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे आवस्जद मासियं परिहारदागं उम्घाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. ४, शु६७-६८ आता है। अण्णमण्णरस केस-परिकम्मरस पायच्छित सत्तं एक दूसरे के केशों के परिकर्म का प्रायश्चित्त सूत्र५२३. जे मिक्खू अण्णमण्णस्स दीहाई केसाई ५२३. जो भिक्ष एक दूसरे के सम्बे फेशों कोकप्पेज वा, संठवेज वा, फाटे, मुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्त वर, संठवेतं वा साइज्जा । काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। सं सेवमाणे आवजह माप्ति परिहारद्वागं उग्याइयं । उसे मासिक उपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ. ४, सु.६८ आता है। अण्णमणस्स सीसवारियकरणस्स पायच्छित्त सुतं- एक दूसरे के मस्तक ढकने का प्रायश्चित्त सूत्र--- ५२४. जे भिक्खू गामाणुगामिय बुइग्नमाणे ५२४, जो भिक्ष. मामानुग्राम जाते हुए एक दूसरे के मस्तक कोअप्पमणस सोसवुवारियं करे, करतं वा साइजा। उकता है, ढकयाता है, ढकने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आबज्जह मासियं परिहारट्ठामं उम्धाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित) -नि.उ.४, सु.१०१ आता है। अन्यतीथिकादि द्वारा स्व-शरीर का परिकर्म करवाने के प्रायश्चित्त--३ कायपरिकम्मकारावणस्स पायच्छित्त सुत्ताई शरीर का परिकर्म करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र५२५. ॐ मिमखू अण्णउत्यिएण त्रा, गारथिएण वा अप्पणो कार्य- ५२५. जो भिक्षु अन्यतौर्थिक से या गृहस्थ से अपने शरीर काआमज्जावेज वा, पमज्जावेज्ज वा, मार्जन करवावे, प्रमार्जन करवाये, अरमन्जायत बा, पमज्जायस या साइजाद । मार्जन करवाने वाले का, प्रमार्जन करवाने वाले का अनु मोदन करे। ने मिक्खू अण्ण उत्विएणवा, गारथिएण वा अपणो कार्य- जो भिक्षु अन्यतीथिंक से या गृहस्थ से अपने शरीर कासंमाहावेज वा, पलिमहाजश, मर्दन करवावे, प्रमर्दन करवावे, संवाहावेतं था. पलिमहावेतं वा साइज्जइ । मदन करवाने वाले का, प्रमर्दन करवाने वाले का अनुमोदन करे। ने भिक्खू अण्णउस्थिएण वा, गारस्थिएण वा अप्पणो कार्य- जो भिक्षु अन्यतीथिक से या गृहस्थ से अपने शरीर कोतेल्लेण वा-जाय-गवणीएण वा, तेल-यावत्-मक्खन से, मक्खावेज षा, मिलिगावेज वा, मलवावे, बार-बार मलवावे, मक्खायेतंबा, मिलिगायत वा सामा मलवाने वाले का, बार-बार मलवाने वाले का अनुमोदन करे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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