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________________ ३६२ चरणानुयोग एक दूसरे के अतिपत्र के परिकर्म का प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र १२०-५२२ बेमिष अण्णमण्णस्स अच्छीणि जो भिक्ष एक दूसरे को आँखों पर-- तेल्लेग पा-जाव-गरणीएम था, तेल-पावत्-मबखन, मखेज वा, मिलिगेग्न वा, मले, बार-बार मले, मलयावे, बार-बार मलवावे, मतंबा, भितिगत वा साइनाइ। मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे । जे मिक्यू अण्णमण्णस्स अच्छोणि जो भिक्ष एक दूसरे की आँखों परलोवेग वा-जाव-वणेग वा, लोध-पावत्-वर्ण का, उस्लोलेग्ज वा, उम्बट्टे ज्ज या, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उबटन करवाने, बार-बार उबटन करवावे, चल्लोलतंबा, जम्ब वा साइज्जह । उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करें। में मिमनू अण्णमण्णस्स मच्छीणि जो भिक्ष, एक दूसरे की आँखों कोसोओरग-वियडेग वा, उसिणोदग-वियोण वा, अचित्त शीत जल से या अचित उष्ण जल से, उन्छोलेज्न था, पधोएज्ज वा, धोये, बार-बार घोये, धुलवावे, बार-बार धुलवावे, सच्छोलेंतंबा, पधोएंत बा साहस्जद । धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू अण्णमण्णस्स असछीगि जो भिक्ष एक दुसरे की आँखों कोफुमेज वा, एज्ज का, रंगे, बार-बार रंगे, रंगवाये, वार-बार रंगवावे, फुतं पा, रएतं वा साइजा। रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करें । तं सेवमागे आवरजा भासिय परिहारद्वाणं जम्बाइ । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्त्रित) -नि. उ. ४, मु. ६१-६६ आता है। अण्णमण्णास अच्छीपत्तपरिकम्मस्स पाय सछत्त सुतं- एक दूसरे के अक्षिपत्र के परिकर्म का प्रायश्चित्त सूत्र - ५२१. मिक्य अण्णमण्णस्स चौहाई अग्छिपत्ताई ५२१. जो भिक्ष एक दूसरे के लम्बे अक्षि पत्रों कोकप्पेज या, संठवेज्न था, ' काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवाये, कप्तं वा, संठवेतं या साइन्जइ । काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे आवजह मासियं परिहारटुाणं उग्घायं। उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) ---नि. उ. ४, सु.६० आता है। अण्णमण्णस्स भमुगाइरोमाणं परिकम्मरस पायच्छित्त एक दूसरे के भौंह आदि के परिकों के प्रायश्चित्त के सुत्ताई५२२. में भिक्खू अण्णमण्णस दोहाई मग-रोमाई ५२२. जो मिक्ष एक दूसरे के भौंह के लम्बे रोमों को-. कापेज बा, संठवेज वा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्पेतं वा, संठवेंस वा साइजद । काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । भिषा अण्णमणस्स बीहाई पास-रोमां जो भिक्ष एक दूसरे के पार्व के लम्बे रोमों कोकप्पेज्ज वा, संठवेज्जया, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवाये, सूत्र
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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