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________________ ३६०] चरणानुयोग एक दूसरे के होठों के परिकों के प्रायश्चित्त इत्र सूत्र ५१६-५१७ जे मिक्खू अण्णमणस बोहाइं चावु-रोमाई जो भिक्षु एक दूसरे की चक्षु के लम्बे रोमों कोकप्पेज्ज वा, संठवेज्ज वा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, कम्पलें वा, संठवतं वा साइजह । काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। त सेवमाणे आवस्जद मासियं परिहारद्वाणं उम्घाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. . ४, सु.७५-७६ आता है। अण्णमण्णरस ओट्ट परिकम्मरस पायच्छित्त सुत- एक दूसरे के होठों के परिकर्मों के प्रायश्चित्त सूत्र५१७. ने भिक्खू अण्णमष्णस्स उ8 ५१७. जो भिक्ष, एक दूसरे के होठों काआमज्जेज्ज वा, पमज्जेज वा, मार्जन करे, प्रमार्जन करे, मार्जन करयावे, प्रमार्जन करवावे, आमज्जंतं या, पमअंत या साहज्जा। मार्जन करने वाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू अण्णमण्णस्स उ8 जो भिक्ष, एक दूसरे के होठों का-- संबाहेज वा, पलिमइज्ज वा, मर्दन करे, प्रमईन करे, मदन करयावं, प्रमर्दन करवावे, संबात वा, पलिमतं वा साइप्रह। मदन करने वाले का, प्रमर्दन करने वाले का अनुमोदन करे। जे भिवय अग्गामण्णास उट्टे, जो भिक्ष एक दूसरे के होठों परतेहलेग वा-जाय-णत्रणीएण वा, तेल-यावत्-मक्खन, मक्खेज वा, मिलिगेज्ज वा, मले, बार-बार मले, मनवावे, बार-बार गलवाये, मक्खेत था, भितिगत वा साइज्जइ । मलने वाले का, बार-बार मानने वाले का अनुमोदन करे । मे भिक्खू अण्णमयस्स उट्ठ जो भिक्ष एक दुसरे के होठों परलोण वा-जाव-वण्णा , लोध-यावद -पूर्ण का, उस्लोलेज वा, उपवट जवा, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उबटन करवाचे, बार-बार उबटन करवावे, उल्लोलतं वा, रश्वदृत वा साइज्जइ । उबटन करने वाले का, बार-बार उबन करने वाले का अनुमोदन करे। जे भिखू अण्णमपणस्स उ8 जो भिक्ष एक दूसरे के होठों कोसीओबग-वियडेण वा, उसिप्पोक्गवियरेण बा, अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, अछोलेज वा, पधोएज्ज वा, धोये, बार-बार धोये, धुलवावे, बार-बार घुलवावे, उन्छोलेंसं वा, पधोएंत वा साज्जा । धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे। जे भिर अण्णमण्णस्स उडे जो भिन एक दूसरे के होठों को-- फुमेज्ज बा, रएज्ज चा, रंगे, बार-बार रंगे, फुमेंसं वा, रएंत वा साइन्जा। रंगवाये, बार-बार रंगवावे. रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे आवजा मासिय परिहारद्वाणं उन्धाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. ४, मु. २३-८८ आता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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