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सूत्र ५१४- ५१६
जं भिक्खू अणमण्णस्स पाएसोओगविक्षेण वा उसिगोगवियज्ञेन चा, वादी मा
होतं या पधोएं या साइज्जइ ।
जे मिव अमणस्स पाएमेवा, रवा,
फुमेतं वा रतं वा साइ
अष्णमण्णस्स
५१४. जे भिक्खू अण्णमण्णस्स दोहाम्रो नह सीहाओकप्पेज्ज या, संठवेज्ज वा,
कप्येक्ज
एक दूसरे के नलान काटने का प्रायश्चित्त सूत्र
- नि. उ. ४, सु. ४६-५४ सोहापरिकम्मस्स पायति सुतं
बा,
कतं वा संठवतं वा साइज्जइ ।
तं सेवमरणे यावज्जइ मासियं परिहारद्वाणं उभ्याइ ।
- नि. उ. ३, सु. ७४ अornerea जंघाइ रोमाणं परिकम्मस्स पायच्छित्त सुत्ताई
५१६. जे भिक्खू अष्णमण्णस्स दीहाई बंध-रोमाई
संवेज्ज श
कतं या. संठतं वा साइज ।
जे भिक्खू अभ्णमणस्स बीहाई क्रोमाई
कप्पेज वर संदवेज्ज वा,
कम्पतं या संख्येत वा साइ
जेमिन अणमण्णस्स बीहाई सु-रोमाई
कव्येज्ज वा संठवेज्ज था,
—
वा वा स
जेमिन्नमरणस्स बीमा कप्पे वाडवेज बा
कप्पेतं वा संठतं वा साइज ।
चारित्राचार
जो भिक्षु एक दूसरे के पैरों को -- अतिशीत जलसे यां भचित्त उष्ण जल से,
धोये, बार-बार धोये,
घुलवावे, बार-बार घुलत्रावे,
धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करें।
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जो भिक्षु एक दूसरे के पैरों को
रंगे, बार-बार-बार रंगे,
रंगवावे, धारदार रंगवावे
रंगने वाले का बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करें । उसे मासिक उपातिक परिहारस्थान (आय) आता है ।
एक दूसरे के नखा काटने का प्रायश्चित सूत्र५१५. जो भिक्षु एक दूसरे के लम्बे नखानों को
काटे, सुशोभित करे,
कटवावे, सुशोभित करवावे, काटने वाले का करने का अनुमोदन करे । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित ) आता है ।
१६.
को -
-
एक दूसरे के जंघादि के रोमों के परिक्रमों के प्रायश्चित्त
सूत्र ---
भिक्षु एक दूसरे के जंघा (टी) के लम्बे रोमों
काटे, सुशोभित करें,
कटवाये, सुशोभित करवावे,
काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करें |
जो भिक्षु एक दूसरे की कुक्षि (कख) के लम्बे रोमों कोकाटे, सुशोभित करे,
कटवावे, सुशोभित करवावे,
काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । एक दूसरे के की मूंछ के सम्बे रोम
काटे, सुशोभित करे,
कटवावे, सुशोभित करवावे;
पटवाने का सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु एक दूसरे के वस्ति के लम्बे रोमों को काटे, सुशोभित करे,
कटवायें, गोभित करवायें,
काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे ।