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________________ ३५८ घरगानुयोग एकदूसरे के मल निकालने के प्रायश्चिस सूत्र सत्र ५१२-५१४ में मिक्खू अण्णमणस्स कापं जो भिक्षु एक दुसरे के शरीर कोफूमेज वा, रएज्ज था, रंगे, बार-बार रंगे, रंगवावे, बार-बार रंगवावे, फत वा, रएतं वा साइजइ । रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे । सं सेवमाणे भावग्जइ चाउम्मरसिय परिहारहाणं उन्धाइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ. ४, सु. १५-६० आता है। अण्णमणस्स मलणिहरणस्स पार्यावछत्त सुसाई- एक दूसरे के मल निकालने के प्रायश्चित्त सूत्र५१३. जे मिक्ख अण्ण माणस अपिछ मलं वा, काण-मलं वा, यंत- ५१३. जो भिक्षु एक दूसरे के आँखों के मेल को, कान के मैल मलं वा, मह-मलं वा, को, दाँत के मल को, नख के मल को, नोहरेज वा, विसोहेज वा, दूर करे, शोधन करे, दुर करवावे, शोधन करवावे, नोहरत बा, विसोहेंतं वा साइजइ। दूर करने वाले का, योधन करने वाले का अनुमोदन करे। मे क्लूि अण्णमण्णस्स कायाओ--सेयं वा, जहलं वा, पंक जो भिक्षु एक दूसरे के शरीर से स्वेद (पसीना) को जल्ल, वा, मल वा, (जमा हुआ मैत्र) पंक (लगा हुआ कीचड़) मल्ल (लगी हुई रज) को, नोहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा, दूर करे, शोधन करे, दूर करवावे, शोधन करवावें, नोहरत वा, विसोत वा साहज्जा । दूर करने वाले का, शोधन करने वाले का अनुमोदन करे । सं सेवमाणे आवज्जह मासिय परिहारद्वाणं उम्घाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. ४, सु. ६६-१७० आता है। अण्णमण्णस्स पायपरिकम्मस्स पायच्छित सुसाई- एक दूसरे के पाद परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र५१४. जे भिक्खू अण्णमण्णस्स पाए ५१४. जो भिक्षु एक दूसरे के पैरों काआमअंग्ज वा, पमजेज वा, मार्जन करे, प्रमार्जन करे, मार्जन करवावे, प्रमार्जन करवावे, आमज्मंत वा, पमजतं या साइजद । मार्जन करने वाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे । में भिस्सू भज्यमण्गस्स पाए-- जो भिक्षु एक दूसरे के पंगें कासंबाहेज्ज वा, पलिमहज्ज वा, मदन करे, प्रमर्दन करे, मर्दन करवावे, प्रमर्दन करवावे, संबात वा, पलिमस वा साइलाइ । मदन करने वाले का, प्रमर्दन करने वाले का अनुमोदन करें। जे मिक्खू अण्णमण्णस्स पाए -- जो भिक्षु एक दूसरे के पैरों परतेलेग वा-जाव-णवणोएग वा, तेल-यावत-मक्खन, मखेजवा, मिलिगेज्न वा, मले, बार-बार मले, मलवाये, बार-बार मलबावे, मक्वंतं वा, मिलिगतं वा साइबाद । मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे । जे मिक्खू अण्णमण्णस्स पाए-- जो भिक्षु एक दूसरे के पैरों परलोवेण बा-जाव-अण्णेण वा, लोध, यावद-वर्ण का, उल्सोलेग्ज वा, उम्वट्ट जज वा, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे, उल्लोलतं वा, उमदृत या साहजह। उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करें।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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