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________________ ३५२ चरगानुयोग मैल दूर करने के प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ५००-५०१ - -- मलगोहरणस्स पायच्छित्त सुत्ताई५०..जे मिक्य अपणो कायामओ - सेयं वा, अस्लं या, पंक या, मलं का, जोहरेज्ज वा, विसोहेज्ज था, णीहरत बा, बिसोहेंतं बा साहजह। जे मिक् अप्पणोअच्छि -मलं बा, करण-मलं वा, दंत-मलं या, गह-मलंबा, जोहरेज्ज वा, विसोहेज वा, गीहरेत वा, विसोत वा साइज्मइ । तं सेवमाणे अनज मासियं निमारदार उपाय -नि. उ. ३, सु. ६७-६८ पायपरिकम्मस्स पायच्छित्त सुत्ताई५.१.जे भिक्खू अपणो पाए आमज्जेज्ज वा, पमन्जेज्म बा, मल दूर करने के प्रायश्चित्त सूत्र५००, जो भिक्षु अपने शरीर से पवेद (पसीना) को, जल्ल (जमा हुआ मैल) को, पंक (लगा हुआ कोयड़) को, मल्ल (लगी हुई रज) को, दूर करे, गोधन करे, दूर करवाने, शोधन करवावे, दूर करने वाले का, शोधन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अपने आँस्त्र के मल को, कान के मेल को, दांत के मैन को, नख के मैल को, दुर करे, शोधन करे, दूर करवावे, शोधन करवाये, दूर कवने बाले का, शोघन करने वाले का अनुमोदन करे। हरो मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्वित्त) आता है। पादपरिकम के प्रायश्चित्त सूत्र५०१. जो भिक्षु अपने पैरों का मार्जन कर, प्रमार्जन करे, भाजन करावे, प्रमार्जन करावे, मार्जन करने वाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अपने पैरों कामर्दन करे, प्रमर्दन करे, मदन करवाये, प्रमर्दन करवावे, मर्दन करने वाले का, प्रमर्दन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्ष अपने पैरों परतेल,-पावत्-नवनीत (मक्खन), मले, बार-बार मले, मलवाये, बार-बार मलवावे, मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे । जो भिक्षु अपने पैरों पर लोध,-यावत्-वर्ण का, उबटन करे, बार-बार उबटन करें, उबटन करावे. बार-बार उबटन करावे, उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अपने पैरों कोअचित्त शीत जल से और अविप्त उष्ण जल से, आमज्जतं वा, पमग्जंतं वा साइजह । जे भिक्खू अत्एणो पाएसंबाहेज्ज वा, पलिमहा वा संबात वा, पलिमहतं वा साइज्जद । जे मिक्खू अपणो पाएतेल्लेण वा-जाद-गवणीएण या, आमंगेज्ज वा, मक्खेज वा, अभंगतं या, मक्खंत वा साइनाइ । जे मिमखू अपणो पाएलोवेग वा-जाव-वाण या, उल्लोलेज्न बा, स्वज्ज वा, उहलोलेंतं वा, उषत वा साहज्जा। जे शिक्ल अप्पगो पाएसोओवग-वियोग वा, उसिमोरम-षियोण वा,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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