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सूत्र ५०१-५०३
नखाप पागों के परिकर्म का प्रायश्चित्त सूत्र
पारित्राचार
३५३
उपछोलेज्ज बा, पधोवेज्ज वा,
उच्छोलतं वा, पधोवतं दा साइज्जद । जे भिक्खू अपणो पाएफूभेज्ज वा, रएज्ज षा,
फूमतं वा, रएंतं वा साइम्मा तं सेवमागे आवजह मासियं परिहारट्ठागं राधाइयं ।
-नि.उ. ३, सु. १६-२१ णहसिहापरिकम्मस्स पायचित्त सुसं५०२. जे भिक्खू अपणो दोहामो नसिहाओ
कप्पेग्ज या, संठवेज्ज वा,
कप्पेत वा, संठतं वा साइज्जइ । तं सेवमाणे आवजह मासिय परिहारट्रायं उधाइ ।
--नि. ३. ३, सु. ४१ जंघाइरोमाणं परिकम्मरस पापछित्त सुत्ताई५३. जे भिवस्त्र अप्पणो वोहाई जंघ-रोमाई
कपेज्ज, संठवेज वा,
धोये, बार-बार धोये, धुलावे, बार-बार धुलावे, धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे । जो भिक्षु अपने पैरो कोरंगे, बार-बार रंगे, रंगावे, बार-बार रंगावे, रंगने वाले का, वार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे ।
उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। नखान भागों के परिकर्म का प्रायश्चित्त सूत्र५०२. जो भिक्षु अपने लम्बे नखानों को
काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करावे, काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन कर ।
उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। जंघादिरोम परिकों के प्रायश्चित्त सूत्र५०३. जो भिक्षु अपने जाँच (पिन्डली) के लम्बे रोमों को--
काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अपने बगल (कांख) के लम्बे रोमों कोकाटे, सुमोमित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। जो मिक्ष अपने श्मथु (दाढ़ी) मूंछ के लम्बे शेमों कोकाटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करयावे, काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अपने वस्ति के लम्बे रोमों कोकाटे, सुशोभित करे, कटवाने, सुशोभित करवावे, काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अपने चक्षु के लम्बे रोमों कोकाटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे ।
उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है।
कप्पेतं वा संठवेत वा साइज्जई। जे भिक्त अपणो दोहाई कपल-रोमाईकप्पेज्ज वा, संठवेज्ज वा,
कप्त बा, संठवतं वा साइजई। जे मिक्स्य अपणो दीहाई मंसू-रोमाइंकप्येज वा, संठवेज्ज वा,
कप्पेतं वा, संबतं वा साइजद । से भिक्खू अपणो दोहाई वस्थि-रोमाईकप्पेज वा, संठवेग्ज यश,
कप्तं वा, संठवेतं का साइज्नई। जे भिकल्लू अप्पमो वोहाई अक्षु रोमाईकप्पेज वा, संठवेज्ज वा
कप्तं वा, संठवेत वा साहबइ। तं सेषमाणे आवजह घाउम्मासियं परिहारट्ठागं नग्धाइय।
-नि. ३.३, सु. ४२-४६