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३५.)
वरगानुयोग
मधुन सेवन के संकस से परस्पर कृमि निकालने का प्रायश्चित सूत्र
सूत्र ४६७-४९८
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहगवडियाए अण्णमाणस कार्यसि. जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियाँ जिसकी (ऐमो स्त्री से)
मैथुन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के, गंवा जाव-मगंदल या,
गण्ड,-पावत् ... भगन्दर को, अण्णपरेणं तिक्खेणं सत्यमाएणं,
किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शसा मे, अच्छिवित्ता वा, विच्छिरिता वा,
छेदन कर, बार-बार छेदन कर, पूर्व वा सोणियं वा.
पीप या रक्त को नीहरिता वा, विसोरेता बा,
निकालकर, शोधन कर, सीओक्ग-बियडेग वा उसिणोडग-बियडेण वा,
अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल में, उच्छोलेता वा, पधोएता था,
धोकर, बार-बार धोकर, अग्णयरेणं आलेवणजाएणं,
किसी एक प्रकार के लेप का, आलिपित्ता बा, बिलिपित्ता बा,
नेप कर, बार-बार लेप कर, सेल्लेग वा-जावणवणीएण वा,
तेल-यावत्-मक्खन, अन्गेज्म वा, मरखेज वा,
मले, बार-बार मले, मलबाबे, बार-बार मलवावे, अभिगत या, मवेत या साहज्जई ।
मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे । जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अम्णमणस कार्यसि, जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियों जिसकी (ऐसी स्त्री से)
मैथुन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के, गंड वा-जाब-मपाल बा,
गण्ड-पावत्-भगन्दर को, अण्णयरेणं तिक्खेगं सत्थजाएगं,
किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र से, अस्छिवित्ता वा, विच्छिवित्ता वा,
छेदन कर, बार-बार छेदन कर, पूर्व वा, सोणियं वा,
पीप या रक्त को, नौहरिता वा, विसोहेत्ता वा,
निकालकर, शोधन कर, सीओवग-विपडेण का, उसिणोरग-वियोण वा,
अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, उपछोलेता वा, पधोएत्ता वा,
धोकर, बार-बार धोकर, अण्णयरेणं पालेवण आएणं,
किसी एक प्रकार के लेप का, आलिपित्ता वा, विलिहिता वा,
लेप कर, बार-बार लेप कर, तेल्लेण वा-जाव-गवगीएण वा, भाभगेत्ता वा, मस्खेत्ता वा तेल-यावत् - मक्खन, मलकर, बार-बार मलकर, भषयरेणं घूवण-जाए, .
किसी एक प्रकार के धूप से, धूवेज्म बा, पवेज्म वा,
घूप दे, बार-बार घूप दे, धूप दिलवावे, बार-बार धूप दिलवावे, धूयंतं था, पध्वंतं वा साइज्जह ।
धूप देने वाले का, बार-बार धूप देने वाले का अनुमोदन करे । सं सेवमाणे भावज्जद चारम्मासिवं परिहारहाणं अगुग्याइयं । उसे चातुर्मासिक अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ. ७, सु. ३२-३७ आता है। हणण्याए अण्णमण्णकिमि-णीहरणस्त पायपिछत्त सुस- मैथन सेवन के संकल्प से परस्पर कृमि निकालने का
प्रायश्चित्त सूत्र१६८, जे मिक्लू मा डागामस्स मेहमवरियाए अण्णमण्णम पालु. ४६८. जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (एसी स्त्री
से मैथुन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के, किमियं या, कुन्छि-किमियं वा,
गुदा के कृमियों को और कुक्षि के कृमियों को, अंगुलीए निवेसिय निसिय,
उँगली डाल-डालकर, मीहरक नीहरतं पा साइन।
निकालता है, निकलवाता है, निकालने वाले का अनुमोदन
करता है। तं सेवमाणे आवज घाउम्मासियं परिधारहाणं अणुग्याहय। उसे दातुर्मासिक अनुदातिक परिहारस्थान (प्रायश्वित्त)
-नि. उ. ७,सु. ३८ आता है।