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________________ ३४] चरणानुयोग मैथुन सेवन के संकल्प से परस्पर प्रण को चिकित्सा करने के प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ४९६-४६७ जे भिक्खू मारणामस्स मेहणवस्यिाए मण्णमणस्स कायसि, घणं संबाहेज्ज वा, पलिमज्ज था, जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रिया जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के शरीर पर हुए वण का मर्दन करे, प्रमर्दन करे, मर्दन करवावे, प्रमर्दन करवाके, मर्दन करने वाले का, प्रमर्दन करने वाले का अनुमोदन संबाहेत या, पलिमतं वा हाइज्जह । करे। जे मिक्ल माजग्गामास मेहषषडियाए अण्णमण्णस कार्यसि जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मथुन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के शरीर पर हुए वर्ग तेल्लेण वा-जाव-गवणीएण वा, प्रण पर तेल-यावत्- मक्खन, माखेज वा, मिलिगेज वा, मले, बार-बार मले, एतनावे. गार वार गलवावे, मरखेत बा, भिलिगंतं वा साइजइ। मलवाने वाले का, बार-बार मलवाने वाले का अनुमोदन करे। से मिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अग्यमण्णस्त कार्यसि, जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (एसी स्त्री से मैथुन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के शरीर पर हुए म सोरेण वा-जाव-षपणेण वा, वण पर लोध,-मावत्-वर्ण का, बल्लोलेन्ज वा, उग्वट्टज्ज वा, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे, उस्लोलत बा, उब्वट्ठतं पा साइजः । उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे। बेभिक्षु माउरगामस्स मेहुणयख्यिाए अण्णमण्णस्स कायंसि, जो भिक्ष माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी ऐसी स्त्री से) मथुन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के शरीर पर हुए वणं सीओदग-वियरेण वा, उसिपोवग-वियरेण वा, अणको अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से: उच्छोलेज्ज वा, पचोएग्जा , छोये, बार-बार धोये, धुलवावे, बार-बार धुलवावे, उन्छोलेंत वा, यधोएंतं वा साइजद । घोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करें। जे भिक्खू माउमामस्स मेहुणवडियाए अण्णमस्णस्स कायंसि, जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियो जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के शरीर पर हुए वणं फुमेन वा, रएज्य षा, खण को रंगे, बार-बार रंगे, रंगवावे, बार-बार रंगवावे, हमेंतं वा, रएतं वा साइज्जइ । रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे । सं सेवमाणे आबन्ना बासम्मापियं परिहारट्टागं अाशाहयं। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) . . . . . -नि. उ. ७, सु. २६-३१ आता है। मेहणवडियाए अण्णमण्ण गंडाइ तिपिच्छाए पायन्छित मैथुन सेवन के संकल्प से परस्पर गण्डादि की चिकित्सा सुत्साई-- करने के प्रायश्चित्त सूत्र-- ४६७. भिक्खू माउग्गामास मेहुणजियाए अण्णमणस कार्यसि, ४६७. जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के शरीर पर हुए
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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