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सूत्र ४६४-४६६
मैथुन सेवन के संकल्प से कृमि निकालने का प्रायश्चित्त सूत्र
पारिवाधार
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मोहरिता वा, विसोहेत्ता वा,' सीओदग-विपडेण वा, उसिणोक्षग-वियरेण मा, उच्छोलेता था, पधोएसा वा, अग्णवरेणं बालेवणजाए आसिपेसा वा, बिलिपेसा वा, तेहलेग वा-जावणववीएण षा, अम्मंगेता था, मक्खेता था, अन्नयरेण वणजाएणं, धूवेन वा, पधूवेज वा,
निकालकर, शोधन कर, अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, धोकर, बार-बार धोकर, किसी एक प्रकार के लेप का, लेप कर, बार-बार लेप कर, तेल-यावत्-मक्खन, मलकर, बार-बार मलकर, किसी एक प्रकार के धूप से, धूप दे, बार-बार धूप दे, धूप दिल नावे. बार-बार धूप दिलवावे, धूप देने वाले का, बार-बार धूप देने वाले का अनुमोदन
घुवेतं षा, पर्वतं वा साइजद ।
तं सेवमाणे आवम्जइ चाउम्मासिय परिहारट्ठाणं अणुग्धाइय।
-नि. 3. ६, सु. ४२-४७ मेहुणवडियाए किमि-णिहरणस्स पायच्छित्त सुसं
उसे चातुर्मासिवः अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है । मैथन सेवन के संकल्प से कृमि निकालने का प्रायश्चित्त
४६५. जे मिक्यू माजग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पगो,
पालुकिमियं वा, कुचिकिमियं वा, अंगुलिए निवेसिय निवे-
सिय,
४६५. जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रिया जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके
अपने गुदा के कृमियों को और कुक्षि के कृमियों को उँगली डाल-डालकर,
निकालता है, निकलवाता है, निकालने वाले का अनुमोदन करता है।
उसे चातुर्मासिक अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है।
मोहरा, नीहरतं वा साइजह ।
तं सेवमाणे आबज्जा पातम्मासिय परिहारहाणं अणुग्याइय।
--नि. उ. ६, सु. ४८
मैथुन सेवन के संकल्प से परस्पर चिकित्सा के प्रायश्चित्त-३
मेहुणज्यिाए अण्णमण्णवणतिगिच्छाए पायच्छिस सुत्ताई- मंथन सेवन के संकल्प से परस्पर व्रण को चिकित्सा
करने के प्रायश्चित्त सूत्र४१६. जे भिक्स माउन्गामस्स मेडणवधियाए अण्णमण्णास कार्यप्ति, ४६६. जो भिक्षु माता के समान हैं इन्दिया जिसकी (ऐसी स्त्री
से) मैथुन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के शरीर पर हुए वगं आमज्जेजबापमम्जेज्ज या,
अण का मार्जन करे, प्रमार्जन करे,
मार्जन करवाये, प्रमार्जन करवावे, मामअंतं वा, पमज्जत वा साइरमा।
मार्जन करने वाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे।