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________________ सूत्र ४६३-४६४ मयुन सेवन के संकल्प से गडाविक चिकित्सा करने के प्रापश्चिम सूत्र चारित्राचार ३४५ भिक्खू मातगामस्स मेहुणवडियाए अपणो कार्यसि वर्ण सीओवग-वियोण वा, उसिणोबर-वियडेण वा, उच्छोलेज्ज था, पोएज्ज वा, उन्छोलेंतं वा पधोएंत वा साइजह । जे भिमलू माउग्गामस्त मेहुणवखियाए अप्पणो कार्य सि वणं कुमेज्ज वा, रएज्ज वा, फुत वा, रएंत या साइजद । तं सेवमाणे आवस्जद धाउम्मासि परिहारहाणं अशाहयं । -नि. उ. ६. सु. ३६.४१ मेहणवधियाए गंडाइ तिगिचछाए पायसिछत्तसुत्ताई--- ४१४, जे मिस्खू माइगामस्स मेहुणवडियाए अपणो कार्यसि- गरं वा-जाब-भगवस वा, अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्यजाएगं, अच्छिवेज वा, विग्छिदेज वा, जो भिक्षु, माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मथुन सेवन का संकल्प करके अपने शरीर पर हुए व्रण को अचित्त शीत जल से या अपित्त उष्ण जल से, धोवे, बार-बार धोवे, धुलवावे, बार-बार धुलदावे, घोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे । को भिक्षु, माता के समान है इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मथुन सेवन का संकल्प करके अपने शरीर पर हुए प्रण को रंगे, बार-बार रंगे, रंगवावे, बार-बार रंगवावे, रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। मैथन सेवन के संकल्प से गण्डादिक चिकित्सा करने के प्रायश्चित्त सूत्र४६४, जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल करके अपने शरीर पर हुए गण्ड'–यावत्-भगन्दर को किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र से, छेदन करे, बार-बार छेदन करे, छेदन करवावे, बार-बार छेदन करवावे, छेदन करने वाले का, बार-बार छेदन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके अपने पारीर पर हुए गण्ड-पावत्---भगन्दर को किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र से, छेदन कर, बार-बार छेदन कर, पीप या रक्त को, निकाले, शोधन करे, निकलवावे, शोधन करवावे, निकालने वाले का, शोधन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियों जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके अपने शरीर पर हुए, गण्ड–यावत्-भगन्दर को किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र से, छेदन कर, बार-बार छेदन कर, पीप या रक्त को, निकाल कर, शोधन कर, अच्छिदंत वा, विच्छित वा साइज्जह । जे भिक्षु माउग्गामस्स मेहुगडियाए अप्पणो कार्यसि-- गंड घा-जाव-भगडलंबा, अध्यायरंग तिक्खेणं सत्यजाएणं, अपिछवित्ता वा, विग्छिविता वा, पूर्व बा, सोणि बा, नौहरेन्ज वा, विसोहेज्ज था, नोहरेंतं वा, विसोत वा सरहम्मद। जे भिक्खू माजग्गामस्स मेहमवडियाए अपणो कार्यसि गंड वा-जाव-मगंदलं घा, अग्णयरेणं तियखेण सत्यजाएग, अच्छिविता वा, छिपिसावा, पूर्व वा, सोणियं वा, नोहरिता या विसोहेला वा,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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