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________________ सूफ४६० विभूषा के संकल्प से अगों की चिकित्सा करवाने के प्रायश्चिस पत्र पारित्राचार [३४१ १-चिकित्साकरण प्रायश्चित्त (५) विभूषा के संकल्प से स्व-शरीर की चिकित्सा के प्रायश्चित्त-१ विभूसावडियाए वतिगिन्छाए पाच्छित्त सुत्ताई .. विभूषा के संकल्प से व्रणों को चिकित्सा करवाने के प्रायश्चित्त सूत्र४६. मे भिवष्णू विभूतावडियाए अप्पणो कार्यसि ४९०. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने शरीर पर हुए वणं आमग्मेन्ज वा, पम के जज वा, प्रण का मार्जन करे, प्रमार्जन करे, मार्जन करवावे, प्रमार्जन करवावे, आमस्तं वा, एमज्जतं वा साहज्जा। भाजन करने बाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू विसावडियाए अपगो कायंसि जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने शरीर पर हुए गणं संबाहेज्ज वा, पलिमद्देन्ज था, वण का मर्दन करे, प्रमर्दन करे, मर्वन करवावे, प्रमर्दन करवावे, संबात वा, पलिमद्दतं पा साइजः। मर्दन करने वाले का, प्रमर्दन करने वाले का अनुमोदन करे। ने भिक्खू विनसाडियाए अप्पणी कार्यसि जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने शरीर पर हुए वर्ष सेल्लेण वा जाव-जयणीएण वा, व्रण पर तेल से-पात्-मक्खन से, मखेम्म या, मिलिगेज्ज वा, मले, बार-बार मले, मलवाचे, बार-बार मलवाये, मक्खेतं वा, मिलिगंत या साइजा। मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे । मे भिक्खू विसावडियाए अपणो कार्यसि जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने शरीर पर हुए वणं लोण वा-जाव-वणेण वा, अण पर लोध-पावत्-वर्ष का, उल्लोलेन्ज बा, उम्ब जज बा, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे, उहलोलेंतं बा, उन्नत वा साइजा। उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू विभूसावडियाए अपणो कार्यसि जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने शरीर पर हुए वर्ण सीओरग-वियोग वा, उसिगोवग वियण बा व्रण को अचित्त शीत जल से या अचिस उष्ण जल से, उच्चछोलेज्ज बा, पधोएज्जया, धोवे, बार-बार धोके, धुलवावे, बार-बार धुलवावे, उच्छोलेंस वा, पधोएत वा साइज्जा। धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे । मे भिक्खू विभूसाडियाए अप्पणो कार्यसि - मो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने शरीर पर हुए वणं फूमेज वा, रएज वा, अण को रंगे, बार-बार रंगे, रंगवावे, बार-बार रंगवाये, फूमतं वा, रयंत पा साहज्जइ । रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे । संसेवमाणे बावज चाउम्मासियं परिहारष्ट्रानं बाद। उसे चातुर्मासिक उपातिक परिहारस्थान (पायश्चित्त) --नि. ज. १५, सु. ११२-११७ आता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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