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________________ ३४० ] चरणानुयोग गृहस्व द्वारा मेस निकालने की अनुमोदना का नि से से परो अंकसि या पलिसिया पावला पावाई सोभोद विडे वा उसिगोवगवियडेण षा उच्छोलेज्ज वा परेएज्ज वा णो तं सातिए को तं नियमे । से से परो अंकसि या पलियकंसि वा तुट्टाता पाठ अरणतरेण विशेषणजाएणं अलिपेज्ज या विलिपेज्ज श्रा, णो सं साइए जो तं नियमे । से से परो अंकसि वर पलियंसि या तुपट्टावेत्ता पावाई अपणतरेण धूवणजाएणं धूवेज्न वा पधूवेज्ज वा जो तं सातिए णो तं नियमे । से से परो अंकसि या पलियंसि वा तुपट्टावेसा हारं वा अवहारं वा उरत्यं वा गेवेयं वा मउ वा पालयं या सुवणसुवाका जो सातिए यो तं तं नियमे -3, से से परो अमि वा कष्णमलं वा दंतमलं वाणमलं वर पोहरेज्ज वा विसोहेन्ज वा को तं सालिए णोतंय - आ. सु. २, अ. १३, सु. ७२१-७२२ हिस्थय रोमपरिकम्मस्स अणुमोषणा णिसेहो - ४८७ से से परी दीहाई बालाई दोहाई रोमाईहाई हाई कमाई दोहाई थिरोमाई कप्पेज्ज या संवेज्ज या को साटिएको थिय सूत्र ४८५-४८ यदि कोई गृहस्य साधु को अपनी गोद में या पलंग पर लिटाकर या करवट बदलवाकर उनके चरणों को प्रासु शीतल जल से मा उष्ण जल से धोये अथवा बार-बार धोये तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया रो भी प्रेरणा करे । यदि कोई गृहस्थ साधु को अपनी गोद में या पलंग पर लिखकर या करवट बदलवाकर उनके पैरों पर किसी एक प्रकार के विलेपन द्रव्यों का एक बार या बार-बार विलेपन करे तो वह न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे । यदि कोई गृहस्थ साधु को अपनी गोद में या पलंग पर लिटाकर या करवट बदलवाकर उनके चरणों को किसी एक प्रकार के विशिष्ट धूप में धूपित और प्रधूपित करे तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे । हित्मकय-मलणीहरणस्स अनुमोषणा जिसेहो गृहस्य द्वारा मेल निकालने की अनुमोदना का निषेध ४८६. से से परी कायालयाारे वा विसी ४०६ यदि कोई गुस्सा के शरीर से पसीने को वा मैल से हे पर णो तं सातिए यो तं नियमे । युक्त पसीने को पोंछे) या साफ करे तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे । यदि कोई गृहस्थ साधु को अपनी गोद में या पलंग पर लिटाकर या करवट बदलवाकर उम्रको हार, अर्धहार, वक्षस्थल पर पहनने योग्य आभूषण, गले का आभूषण, मुकुट, लम्बी माला, सुवर्णसूत्र बांधे या पहनाये तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन एवं काया से भी प्रेरणा करे । -आ. सु. २, अ. १३, सु. ७३१ यदि कोई मुहरु साधु के बांका कान का मैल, दांत का मैल या नख का मेल निकाले या उसे माफ करे तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे । गृहस्थकृत रोम परिक्रमों की अनुमोदना का निषेध४. यदि कोई गृहस्थ साधु के सिर के सम्बे जों, लम्बे रोगों, केशों, भौहें एवं कांस के लम्बे रोमों, लम्बे गुह्य रोमों को काटे, अथवा सँवारे, तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी " - आ. सु. २, अ. १३, सु. ७२३ प्रेरणा करे । मिक्स भिक्खुणोए अष्णमणकिरिया जिसे हो भिक्षु भिक्षुणी की अयोग्य परिकर्म क्रिया की अनुमोदना का निषेध-४८. सेवा मिश्खुणी वा अम्यमन्नकिरियं अशा ४८८ साया की अन्योन्य कारस्वर पादन्यमा सात्री सहभए भोगिय नादि समस्त क्रिया, जो कि परस्पर में सम्बन्धित है, कर्मसंश्लेषजननी है, इसलिए वह इसको नमन से चाहे, और न वचन एवं काया से भी प्रेरणा करे । --आ. सु. २, अ. १२, सु. ७३० अण्णमण्ण पायाइ परिकम्म जिसे हो अयोग्य पादादि परिकर्म किया की अनुमोदना का निषेध ४८. से अण्णमण्ण पाए आमज्जेज्ज या मज्जेज वा णो तं ४८६. साधु या सत्री (बिना कारण ) परस्पर एक दूरे के सातिए जो तं जियमे । चरणों को पोंछकर एक बार या बार-बार पोंछकर साफ करें तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन एवं काया से भी प्रेरणा करे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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