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________________ सूत्र ४८३-४८५ उद्यानावि में गृहस्वकृत पर आदि के परिको की अनुमोवना का निषेध चारित्राचार [३३६ से से परी पावाई सीओवगविषरेण वा उसिणोदगविमरण या यदि कोई गृहस्थ साधु के चरणों को प्रासुक शीतल जल से उच्छोलेन्ज वा पधोएज्ज वा, णो तं सातिए जो तं या उष्ण जल से धोये या बार-बार धोये तो वह उसे न मन से णियमे। चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे। से से परो पाबाई अण्णतरेण विलेवणजातेण आलिपेज वा यदि कोई गृहस्थ साधु के चरणों पर किसी एक प्रकार के विलियेज्ज वा, मोत सातिए गोतं गियो । द्रव्यों से एक बार या बार-बार विलेपन करे तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे । से से परो पाबाई अवतरेण धूवणजाएगं यूवेज्ज वा पधूवेज्ज यदि कोई गृहस्थ साधु के चरणों को किसी एक प्रकार के वा, णो तं सातिए गो त णियमे । धूप से धूपित और प्रधूपित करे तो वह उसे न मन से चाहे और -आ. सु. २, अ.१३, सु. ६६१-६६८ न वचन और काया से भी प्रेरणा करे। आरामास गिहत्यकयपायाइ - परिकम्माणमोयणा उद्यानादि में गृहस्थकुत पैर आदि के परिकमों की अनणिसेहो मोदना का निषेध - ४८४. से से परो आरामसि वा उमासि या पीहरितामा विसो. ४८४. यदि कोई गृहस्थ साधु को आराम या उद्यान में ले जाकर हिता वा पायाई आमजोजवा, मम्जेम्ज वा गोतं सातिए प्रवेश कराकर उसके चरणों को पोंछे, बार-बार पोंछे तो वह गोणियमे। उसे न मन से चाहे. न पचन और काया से भी प्रेरणा करे। एवं यावा अण्णमग्णकिरिया । इसी प्रकार साधुओं की अन्योन्यपिया पारस्परिक क्रियाओं -आ. सु. २, अ. १३, सु. ७२७ के विषय में भी ये सब सूव पाठ समझ लेने चाहिए। गिहत्थकय-पाय परिफम्म णिसेहो गृहस्थकृत पादपरिकर्म निषेध४८५. से से परो अंकसि वा पलियकसि या तुयट्टावेत्ता पाबाई ४८५. यदि कोई गुहस्थ साधु को अपनी गोद में या पलंग पर आमजेग्न वा पमन्वेषण था, जो तं सातिए णो त णियमे। लिटाकर अथवा करवट बदलवाकर उनके चरमों को वस्त्रादि से पोंछ, अथवा बार-बार पोंछे तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे। से से परो अंकसि वा पलियंकासि वा सुयट्टावेसा पाबाई यदि कोई गृहस्थ साधु को अपनी गोद में या पलंग पर संबाधेजा वा पलिमहाजा वा, णोतं सातिए णो तं गियमे। लिटाकर या करवट बदलवाकर उसके चरणों को सम्मदन करे या प्रमर्दन करे तो वह उसे न मन से चाहे. न वचन और काया से भी प्रेरणा करे। से से परो अंकसि वा पलियसि वा तुयावेत्ता पादाई यदि कोई गृहस्थ साधु को अपनी गोद में या पलंग पर फुमेऊन या रएज्ज वा, णो तं सातिए गो त णियमे । लिटाकर या करवट बदलवाकर उसके चरणों को फंक मारे या रंगे तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे। से से परो असि वा पलियकसि वा तुपट्टावेता पाबाई यदि कोई गृहस्य साधु को अपनी गोद में या पलंग पर तेस्लेण वा-जाव-बसाए वा मबखेज्ज वा भिलियेज्ज वा, गो लिटाकर या करवट बदलावाकर उनके चरणों पर तेल-यावततं सातिए गो संजियमे। चर्बी से मले तथा बार-बार मले तो वह उसे न मन से वाहे, न वचन एवं काया से भी प्रेरणा करे। से से परो अंकसि या पलियंकासि वा सुपट्टावेत्ता लोटेण वा, यदि कोई गृहरथ साधु को अपनी गोद में या पलंग पर करकेण वा चुणेज वा बम्मेण वा उरुसोलेज्न वा उसज्ज लिटाकर या करवट बदलवाकर उनके चरणों पर लोध -यावत् - वा, गोतं सातिए णोतं णियमे । वर्ण का उबटन करे बार-बार उबटन करे तो वह उसे न मन से चाहे, न बनन एवं काया से भी प्रेरणा करे ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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