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________________ ३३८] सरणानुयोग गृहस्यकृत शरीर के परिकौ की अनुमोदना का निषेध सूत्र ४८२.४८३ मिटायकय-कागरिकापस्म मोरणा मिलो - गृहस्थकृत शरीर के परिकर्मों की अनुमोदना का निषेध४८२. से से परो कार्य आमग्नेज्न वा पमज्जेज्ज वा, गो तं सातिए ४६२. यदि कोई गृहस्थ मुनि के शरीर को एक बार या बारजो तं णियमे। बार पोंछकर साफ करे तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे । से से परो काय संबाधेज्ज वा पलिमज्ज वा, णो तं सातिए यदि कोई गृहस्थ मुनि के शरीर को एक बार या बार-बार गोतं णियमे। मर्दन करे तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे। से से परी कायं तेल्लेण वा-जाव-बसाए वा मक्खेज्ज यदि कोई गहस्थ मुनि के शरीर पर तेल -यावत्-चर्बी वा अन्भज्ज बा, जो तं सातिए णो तं गियमे । मले या बार-बार मले तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे। से से परो कार्य लोदेण वा-गाव-वर्णण वा उल्लोलेन्ज वा यदि कोई गृहस्थ मुनि के शरीर पर लोध, - यावत-वर्ण उस्वटेज्ज बा, जो तं सातिए पो त णियमे। का उबटन करे, बार-बार उबटन करे तं, वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे । से से परो कार्य सीतोगवियर्डण वा उसिभोवगविण वा कदाचित् कोई गृहस्थ साधु के शरीर को प्रामुक शीतल जल उच्छोलेग्ज वा पधोवेज्ज या, गो त सातिए णो तं णियमे । से या उष्ण जल से धोये या बार-बार धोये तो वह उसे म मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे। से से परो कार्य अषणतरेण विलेवण जाएणं आलिपेज्ज वा कदाचित् कोई गृहस्थ मुनि के शरीर पर किसी एक प्रकार विलिपेन्ज वा, जो तं सातिए णो तं णियमे । के विलेपन से एक बार मा बार बार लेप करे तो वह उसे न मन से चाहे न वचन और काया से भी प्रेरणा करे। से से परो कार्य अण्णतरेण धूवणजाएण धूवेज्ज वा पधूवेन्ज यदि कोई गृहस्य मुनि के शरीर को किसी अन्य प्रकार के वा. णो तं सातिए जो तं णियमे । धूप से धूपित करे या प्रधूपित करे नो वह उसे न मन से चाहे, न बचा और काया से भी प्रेरणा करे। से रो परो कार्य कुमेज्ज या रएज्ज था, जो तं सातिए णोतं यदि कोई महन्थ मुनि के गरीर पर फूंक मारे था रंगे तो गियमे। -आ. सु. २, अ. १३, सु.७०१-७०७ वह उमे न गन से चाहे. न व वन एवं काया से भी प्रेरणा करे। गिहत्यकय-पापपरिकम्मस्स अणुमोयणा णिसेहो- गृहस्थकृत पादपरिकम की अनुमोदना का निषेध४.३. से से परो पागाई आम जेज्ज वा पमज्जेज वा, णोतं ४१. यदि कोई गृहस्थ मुनि के चरणों को (वस्त्रादि से) पोंछे. सातिए णोतं णियमे। बार-बार पोछे तो वह उसे न मन से च है, वचन और काया से भी प्रेरणा न करे। से से परो पाबाई संसाधेज वा पसिमद्देज घा, पोतं सातिए यदि कोई गृहस्थ मुनि के चरणों का मर्दन करे, प्रमदन करे णोतं णियमे। वह उसे न मन से चाहे, न बरग और काया से भी प्रेरणा करे। से से परो पावाई फुमेज्ज वा रएज्ज बा, णोतं सातिए णो यदि कोई गृहस्व मुनि के चरणों को फूंक मारे तका रंगे तो तं नियमे । ___ वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे । से से परो पादाई तेल्लेण वा जाव-चसाए वा मक्खेज वा यदि कोई गृहस्थ साधु के चरणों पर तेल-यावत--चीं मिलिज्ज वा णो तं सातिए, गोतं णियो। मले या बार-बार मले तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे। से से परोपागाई लोण वा-जाव-वणेण वा उल्सोलेज्ज वा यदि कोई गृहस्थ साधु के चरणों पर लोध,--यावत्-वर्ण उबटुज्ज वा, जो तं सातिए णो णियमे । का उबटन करे या बार-बार उबटन करे तो वह उसे न मन से चाहे, न वचन और काया से भी प्रेरणा करे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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