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________________ १३६] परणानुयोग स्त्री-राम निषेध सूत्र ४० अहं संतुभेदमावन्न', मुगिछतं भिक्षु काममतिवटुं। पलिमिरियाण सो पच्छा, पादु बटु भुद्धि पहणंसि ।। आइसियाए मए भिक्खू णो विहरे सह गमिचीए । कैसागि विहं लुचिस्सं, नन्नत्य भए परिज्मासि ॥ अहणं से होति उवलद्धो, तो पेसति सहाभूतेहि। साउच्छेचं पेहाहि. पागुफलाई आहराहि ति ॥ वाहणि सागपागाए, पजोओ वा भविस्सती रातो। पाताणि य मे श्यावेहि. एहि य ता मे पट्टि उम्मई ।। वत्थागि म मे पडिलेहेहि, अन्नपागं च आहराहि ति । गंधं च रओहरणं . कासवगं . समजाणाहि ॥ अदु अंजणि अलंकारं, कुक्कुत्यं च मे पछाहि । लोद्धं च सोसफुसुमं च, वेणुपलासियं च गुलियं च ॥ कुट्ट अगुरु' तगम च, संपिटु समं उत्तीरेण । तेल्ल मुहं मिलिजाए, वेणुफलाइं समिधाणाए।। चारित्र से भ्रष्ट मूच्छित और कामासक्त भिक्षु को वश में करने के बाद स्त्री उसके सिर पर पैर से प्रहार करती है। (भिशु को वश में करने के लिए कोई स्त्री कहती है --) मैं केश रखती हूँ। भिक्षु ! यदि तुम मेरे साथ विहार करना नहीं चाहते तो मैं केशलुंचन कर लूंगी। तुम मुझे छोड़ अन्यत्र मत जाओ। __ जब वह भिक्षु पकड़ में आ जाता है तब उससे नौकर का काम कराती है—व काटने के लिए चाकू ला । अच्छे फल ला। शाकभाजी पकाने के लिए लकड़ी ला। उससे रात को प्रकाश भी हो जायगा । मेरे पैर रचा । आ, मेरी पीठ मल दे। मरे वस्त्रों को देख (ये फट गये हैं, नये वस्त्र ला) अन्न-पान ले आ । सुगन्ध चूर्ण और कूची ल।। बाल काटने के लिए नाई को बुला। अंजनदानी, आभूषण और तंबतीणा ला । लोध, लोध के फूल बांसुरी और औषध को) गुटिका ला । कूठ, तगर, अगर, खस के साथ पीपाडा चूग, मुंह पर मलने के लिए तेल तथा वस्त्र आदि रखने के लिए बांस की पिटारी ला। (होठों को मुलायम करने के लिए) नन्दी चूर्ण, छत्ता और जूते ला। भाजी छीलने के लिए छुरी ला । वस्त्र को हल्के नीले रंग से रंगा दे। चाक पकाने के लिए तपेली, आंवले. कलश' तिलककरनी अंजनशलाका तथा गरमी के लिए पंखा ला । (नाक के केशों को उखाड़ने के लिए ) संदशक, कंधी और केश-कंकण ला । दर्पण दे और दतवन ला। सुपारी, पान, सुई, धागा, मूत्र के लिए पात्र, सूप, ओखली मूसल और सब्जी गलाने का बर्तन ला । आयुष्मान् । पूजा-पात्र और लघु पात्र ला। संडास के लिए गढा खोद दे। पुत्र के लिए धनुष्य और धामणेर (श्रमण पूष) के लिए तीन वर्ष का बैल ले आ । बच्चे के लिए घण्टा, उमरू और कपड़े की गेंद ला। हे भर्ता ! वर्षा सिर पर मंडरा रही है। इसलिए घर की ठीक व्यवस्था कर। नई सुतली की खटिया और चलने के लिए काष्ठ पादुका ला। तथा गर्भकाल में स्त्रियाँ अपने दोहद (लालसा) की पूर्ति ने लिए अपने प्रियतम पर दास की भांति शासन करती हैं। मंदीचण्णगाई पहराहि, छत्सोबाहणं च जाणाहि । सत्यं च सूबमछयाए, भाषीलं च वस्थय रथावेहि। सुणि च सागपागाए, मामलगाई बगाहरणं च। तिलगकरगिमंजणसालागं, घिसु मे विधूणयं विजाणाहि ।। संज्ञासगं च फणिहं च, सोहलिपासगं च आणाहि । आयसगं पयसाहि, बंतपक्खालणं पवेसेहि ॥ पूयफल तंबोलं च, पूईमुत्तमं च जाणाहि । कोसं च मोयमेहाए, मुस्पललयं च बारगलणं च ॥ चंदालगं च करगं च, परचघरगं च भाउसो' खणाहि। सरपादग च जाताए, गोरहगं . सामणेराए । घडिगं च डिदिमयं च, चेलगोल कुमारभूताए । वासं समभियावन्न', आवसहं च जाण मत्तं ॥ आसंबियं च मवसुतं, पाउल्लाई संकमट्टाए। भवु पुत्तबोहलढाए, आगप्पा हवंति हासा या ॥
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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