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३२६] चरणानुयोग
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२.कहाणि
४६७ नो
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२- स्त्री कथा निषेध
४६७. जो स्त्रियों की कथा नहीं करता वह निर्ग्रन्थ है ।
प्र० - यह क्यों ?
ऐसा पूछने पर आचार्य कहते हैं स्त्रियों की कथा रस्सममेरेपिच्छा करने वाले ब्रह्मवारी को अव के विषय में शंका, कांक्षा या
विचिकित्सा उत्पन्न होती है ।
हकहित से नि
पतं फहमिलि ?
उ०- आयरिवाह नगंसबलु स्वीगं वह कहे माणस
वा समुपज्जा,
मेवा समे
स्त्री-कथा निषेध
जम्मा,
दोहकालियं या रोगायक हवेन्जा केवलिपन्नताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तन्हा नो इत्थोणं हूं कलेज्जा,
-उत्त. अ. १६, सु. ३ मणि कामरागविवण । यम्मरी मिस्तु ॥ सयं च संभवं पीहि संकहं च अभिवचणं । मिक्स परिय
प० - तं कहमिति थे ? उ०- आदरिवाह नि
- उत्त. अ. १६, गा. ४-५
सूत्र ४६७ ४६८
गयस्स, बिहरमागास कंडा था. वितिरिछावा मनुष्य
मेवा
उम्मायं वा पाउपिज्जा,
हालय वा रोगाचं
ना केवलिपत्ताओ या धम्माओ मंसेज्जा 1
म्हातो निचे इत्यहि सह सनिलेवानए बिरेज्जा ! -उत्त. अ. १६, सु. ४ फुटवंति संथ ताहि, पम्भट्ठा समाहिजोगेहिं । तुम्हा समना ण समेति आतहिताय सब्सेिज्जाओ || --सू. सु. १, अ. ४, उ. १, गा. १६ जहा कुकुडपीयरस, निम एवं खु बंजारिस, इत्थीविभगाओ मयं ॥
- दस. अ. 5, गा. ५.३
अथवा ब्रह्मवयं विनास होता है, अथवा उन्माद पैदा होता है,
reat दीर्घकालिक रोग और आतंक होता है, अथवा वह केवल कति धर्म से भ्रष्ट हो जाता है, इसलिए स्त्रियों की कथा न करे ।
ब्रह्मचर्य में रत रहने वाला भिक्षु मन को आल्हाद देने वाली तथा काम-राम बढ़ाने वाली स्त्री-कथा का वर्जन करे ।
३. इत्यहि सद्ध निसेआणि सेहो -
३- स्त्री के आसन पर बैठने का निषेध
४४६० स्त्रियों के साथ एक आसन पर नहीं बैठता ह
निर्ग्रन्थ है ।
ब्रह्मचर्य में रत रहने वाला भिक्षु स्त्रियों के साथ परिचय और बार-बार वार्तालाप का सदा वर्जन करे ।
का एक आसन पर बैठने वाले ब्रह्मचारी के शंका, कांक्षा, या विचिकित्सा, उत्पन्न होती है । अथवा बहाव का विनाश होता है, अथवा उन्माद पैदा होता है,
प्र० - यह क्यों ?
उ० ऐसा पूछने पर आचार्य कहते हैं स्त्रियों के साथ
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areer दीर्घकालिक रोग और आतंक होता है, अथवा वह केवल कथित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है, इसलिए स्त्रियों के साथ एक आसन पर नहीं बैठना चाहिए।
समायोगों (ध्यान) से भ्रष्ट पुरुष ही उन विषयों के साथ संसर्ग करते हैं। अतएव श्रमण आत्महित के लिए स्त्रियों के निवास स्थान पर बैठा (निपद्या) नहीं करते ।
जिस प्रकार मुर्गे के बच्चे को बिल्ली से सदा भय होता है, उसी प्रकार ब्रह्मचारी को स्त्री के शरीर से भय होता है ।