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प्रत्र ४५३-४५५
ब्रह्मचर्य के खजित होने पर सभी महावत खण्डित हो जाते हैं
पारित्राचार
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२८, झाणेसु य परमसुक्कक्षाणं ।
(२५) ब्रह्मचर्य ध्यानों में परम शुक्लध्यान के समान सर्व
प्रधान है। २६. णाणेसु य परमकेवलं सुप्रसिद्ध ।
(२६) समस्त ज्ञानों में जैसे केवलज्ञान प्रधान है, उसी
प्रकार सर्व प्रत्तों में ब्रह्मचर्य वत प्रधान है। ३०. सेसामु य परम सुक्कलेसा ।
(३०) लेश्याओं में परमशुक्ललेश्या जैसे सर्वोत्तम है, वैसे
ही सब व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत प्रधान है। ३१. तिथंकरे जहा चेव मुणोणं ।
(३१) ब्रह्मनर्य प्रत सब व्रतों में इसी प्रकार उत्तम है,
जैसे सब मुनियों में तीर्थकर उत्तम होते हैं। ३२. बासेमु जहा महाविवेहे।
(३२) ब्रह्मचर्य सभी व्रतो में वैसा ही श्रेष्ठ है, जैसे सब
क्षेत्रों में महाविदेह क्षेत्र उत्तम है। ३३. गिरिराया चेव मंदरवरे ।
(३३) पर्वतों में गिरिराज सुमेह की भांति ब्रह्मचर्य सर्वोत्तम
प्रत है। ३४. वणेसु जह मंवणवणं पवरं ।
(३४) जैसे समस्त वनों में नन्दनवन प्रधान है, उसी प्रकार
समस्त बत्तों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। ३५. दुमेसु जहा जंबू सुवंसणा विस्सुयजसा, जीए नामेण, (३५) जैसे समस्त वृक्षों में सुदर्शन जम्बू विस्मात है. जिसके घ-अर्यवीवो।
नाम से यह द्वीप विख्यात है। उसी प्रकार समस्त व्रतों में ब्रह्मचर्य
विख्यात है। ३६. तुरगवती, गयवती, रहवती, नरवती जह विसुए घेव- (३६) जैसे अश्वाधिपति, गजाधिपति और रथाधिपति राया।
राजा विख्यात होता है, उसी प्रकार ब्रह्मचर्यताधिपति
विख्यात है। ३७. रहिय चेव जहा महारगए।
(३७) जैसे रथिकों में महारथी राजा श्रेष्ठ होता है, उसी
प्रकार समस्त ब्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत सर्वश्रेष्ठ माना है। एषमणेगा गुणा महोणा भवंति एकरूमि बंपचेरे।।
इस प्रकार (ब्रह्मचर्य) अनेक निर्मल गुणों से व्याप्त है।
- प. सु. २, ३, ४, सु.२ बंभचेरभग्गे सय्ये महत्वया भग्गा--
ब्रह्मचर्य के खण्डित होने पर सभी महावत खण्डित हो
जाते है४५४ मि य भगामि होइ सहसा सव्वं संभग्गदिव्यमस्थिय- ४५४, (यह ऐसा आधारभूत व्रत है) जिसके भग्न होने पर
ब्णिय कुसस्लिप-पस्वयपडिय-खशिय-परिसघिय - विणासिय, सहसा-एकदम सब विनय, शोल, तप और गुणों का समूह विणव-सोल-तव-नियम-गुणसमूहं ।
फूटे घड़े की तरह समग्न हो जाता है, दही की तरह मथित हैं। -प. मु. २, अ. ४, सु. २.३ जाता है, आटे की भाँति चूर्ण-चूरा चूरा हो जाता है, काटे लगे
शरीर की तरह शल्य युक्त हो जाता है। पर्वत से लुकी शिला के समान लुढ़का-गिरा हुआ, चीरी या तोड़ी हुई लकड़ी की तरह खण्डित हो जाता है तथा दुरवस्था को प्राप्त और अग्नि द्वारा
दग्ध होकर बिखरे काष्ठ के समान विनष्ट हो जाता है। मधेरै आराहिए सव्वे महत्वया आराहिया
ब्रह्मचर्य की आराधना करने पर सभी महावतों की आरा
घना हो जाती है-- ४५.५.२ बम भगवंतं मिय भाराहियमि मिग सब्वं-- वह ब्रह्मचर्य भगवान है--अतिशय सम्पन्न है ।