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________________ ३२०] चरणानुयोग ब्रह्मचर्य के विवातक सूत्र ४५५-४५६ "सौसं तयो य, त्रिणओ घ, संजमो य, खेती, गुत्ती, मुत्ती, इस प्रकार एक ब्रह्मचर्य की आराधना करने पर अनेक गण तहेब इहलोइय-पारलोइय जसे प, कित्ती म, पच्चओ य"। स्वतः अधीन-त्राप्त हो जाते हैं । ब्रह्मचर्य व्रत के पालन करने पर तम्मा निहुएण बमचेर चरिमन्व, सम्बओ विसुदं जायज्जी- निर्ग्रन्ध प्रवज्या सम्बधी सम्पूर्ण व्रत अखण्ड रूप से पालित हो बाए जाव सेयको संजउत्ति ।। जाते हैं, यथा-शील, समाधान, तप, विनय और संयम, क्षमा, गुप्ति, मक्ति-निर्लोभता । ब्रह्मचर्य प्रत के प्रभाव से इहलोक और परलोक सम्बन्धी यथ और कीर्ति प्राप्त होती है। यह विश्वास का कारण है अर्थात् ब्रह्मचारी पर सब का विश्वास होता है। अतएव श्रेयार्थी को एकाग्रचित से (तीन करण और तीन योग से) विशुद्ध (सर्वथा निर्दोष) ब्रह्मचर्य का यावज्जीवन पालन करना चाहिए। इस प्रकार भगवान् महावीर ने ब्रह्मचर्य व्रत का कथन किया है। एवं मगियं वयं भगवया, तं सम गताा का तह कशा म मार हैगाहाओ गाचार्यपंचमहत्वसुग्वयमूल, समगमणाइल साहसुचिन्न । यह ब्रह्मचर्य प्रत पांच महावत रूप शोभन प्रतों का वेर-विरमणं पज्जवसाणं, सध्यसमुहमहोदधितित्वं ॥ मूल है. शुद्ध प्राचार या स्वभाव वाले मुनियों द्वारा भाव पूर्वक सम्यक् प्रकार से सेवन किया गया है, यह बैरभाव की निवृत्ति और उसका अन्त करने वाला है तथा समस्त समुद्रों में स्वयंभूरमण समुद्र के समान दुस्तर किन्तु तैरने का उपाय होने के कारण तीर्थस्वरूप है। तित्थकरेहि सुवेसियमम्ग, नरय-तिरिच्छ-विवक्जियमागं । तीर्थकर भगवन्तों ने ब्रह्मचर्य व्रत के पालन करने के मामसम्बपविसिसुनिम्मियसार, सिद्धिविमाणभयंगुपवारं ॥ उपाय-गुस्ति आदि भलीभाँति बत नार हैं। यह नरकगति और तिर्य चगति के मार्ग को रोकने वाला है, अर्थात् ब्रह्मचर्य आराधक को नरकतिर्यचगति से बचाता है, सभी पवित्र अनुष्ठानों को सारयुक्त बनाने वाला तब मुक्ति और वैमानिक देवगत के द्वार को बोलने वाला है। वैष-नरिव-नमंसिपपूर्व, सम्यजसम-मंगलमगं । देवेन्द्रों और नरेन्द्रों के द्वारा जो नमस्कृत है, अर्थात् देवेन्द्र दुरिसं गुणनायकमेक्क, मोक्सपहस्तसिगपूयं ।। और नरेन्द्र जिनको नमस्कार करते हैं उन महापुरुषों के लिए -- प. सु. २, अ. ४. सु ३-४ भी ब्रह्मचर्य पूजनीय है। यह जगत् के सब मंगलों का मार्ग उपाय है अथवा प्रधान उपाय है । यह दुदर्ष अर्थात् कोई इसका पराभव नहीं कर सकता या दुष्कर है। यह गुणों का अद्वितीय नायक है अर्थात् ब्रह्मचर्य हो ऐसा साधन है जो अन्य सभी सद् गुणों की आराधना को प्रेरित करता है। बंमचेर विघातका ब्रह्मचर्य के विघातक४५६. जेण सुउधरिएण भबह सुबमणो सुसमणो सुसाहू सुइसी ४५६. ब्रह्मचर्य महाव्रत का निर्दोष परिपालन करने से मनुष्य सुमुणी संजए एवं मियासू जो सुखं चरति मधेरं । उत्तम ब्राह्मण, उत्तम श्रमग, उत्तम साधु, श्रेष्ठ ऋषि अर्थात् पथार्य तत्वदृष्टा, उत्कृष्ट मुनि-तल का वास्तविक मनन करने वासा, वही संयत संयमवान् और वही सच्चा भिक्षु-निर्दोष भिक्षाजीवी है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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