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चरणानुयोग
७. मणि पुस- सिल प्पवास-रस-रमणागराणं च जहा समु
८. वेलिओ घेव जहा
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E. जहा मउको छेव मूलणार्थ ।
१०. स्थाणं चैव जोमसुपलं ।
१५.
मगरे ।
११. अरविन् १२. पोसी
बंदणार्थ ।
१३. हिमवन्तो बेब ओसहोणं ।
१४. सीतोवा घेण निवाणं ।
१६. गवरे चैव मंडलिक पध्वयाणं ।
१०.पए व जराणं ।
१८. सिहोय जहा मिगाणं । ११. परो सुपझगाणं
२६.
वेणुदेवे ।
२०. धरणे अहा पग-इंदराया।
२१.
लोए। २२. सभासु य जहा भवे सोहम्मा
२३. ठितिसु लवससमध्य वरा ।
२४. दामागं चेव अभयवाणं ।
२५. किमिराओ बेव कम्यलाणं ।
बह्मचर्य की तीस उपमाएँ
२७. संहाने चैव समचरंसे ।
(७) मणि मुक्का, शिला वारला (रत्न) की उत्पत्ति के स्थानों में समुद्र प्रधान है, उसी प्रकार ब्रह्मग सर्व व्रतों का श्रेष्ठ उद्भव स्थान है
( ) इसी प्रकार ब्रह्मचर्य मणियों में वैडूर्यमणि के समान उत्तम है।
(१) आभूषणों में मुकुट के समान है।
(१०) समस्त प्रकार के वस्त्रों में क्षोमयुगल / कपास के वस्त्रयुगल केस है।
(११) पुष्पों में श्रेष्ठ अरविन्द कमलपुष्प के समान है। (१२) चन्दनों में गोशी चन्दन के समान है। (१३) से चमत्कारिक वनस्पत्तियों का उत्पत्ति स्थान हिमवान् पर्वत है, उसी प्रकार आमशोध आदि (सब्धियो) है।
की उत्पत्ति का स्थान
श्रीतोदा नदी प्रधान है, वैसे ही सब
(१४) जैसे नदियों में व्रतों में बढ़चर्य प्रधान है।
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(१५) समुद्रों में स्वयंभूरमण समुद्र जैसे महान है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्यं महत्वशाली है।
(१६) जैसे माण्डतिक अर्थात् गोलाकार पर्वतों में रुचकवर पर्वत प्रधान है, उसी प्रकार सब व्रतों में ब्रह्मचयं प्रधान है। (१७) इन्द्र का एरावण नामक गजराज जैसे सर्व गजराजों में श्रेष्ठ है, उसी प्रकारों में मुख्य है।
(१०) तुओं में सिंह के (११) ब्रह्मचर्यं सुवर्णकुमार देवों में श्रेष्ठ है।
प्रधान है। वेणुदेव के समान
(२०) जैसे कुमार जाति के देशों में धरमेन्द्र प्रधान है, उसी प्रकार सर्व व्रतों में ब्रह्मचर्यं प्रधान है ।
(२१) कल्पों में कहानी कल्प के समान ब्रहावर्य उत्तम है। (२२) जैसे उत्पाद सभा आदि इन पांचों सभाओं में सुधर्मा सभा श्रेष्ठ है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य है ।
(२१) जैसे स्थितियों में मातरनिमानवासी देवो की स्थिति प्रधान है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचयं प्रधान है।
(२४) सब दानों में अभयदान के समान ब्रह्मचर्य सब व्रतों में श्रेष्ठ है।
(२५) ब्रह्मचर्यं सब प्रकार के कम्बलों में कृमिरागरक्त कम्बल के समान उत्तम है ।
व्रतों में उत्तम है ।
(२६) संहननों में ऋषभनाराचसंहनन के समान ब्रह्म
यं समस्त व्रतों में उत्तम है ।
(२७) संस्थानों में
परसंस्थान के समान बढ़ाये समस्त