SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५६] चरणानुयोग १. सोतामयाओ सोपखातो ववशेयेत्ता भवति । २. सोतामणं वेगं संजोगेत्ता भवति । ३. चक्माओं सोखतो ववशेवेसा भवति । ४. एवं पदे संजोता भवति । ५. घाणमयाओ सोबखातो ववशेषेत भवति । ६. घाण जोगेा भवति ७. जिममयाओ सोखासो ववरोवेत्ता भवति । एवं श्वेणं संजोता भवति । ६. बरोब २०. फासणं संजोक्ता भवति । पंच दिपाका दसविहं असंजय कुवंति पंचेन्द्रिय के घातक दस प्रकार का असंयम करते हैं ४१४. पचिविया णं जीवा समररममाणस्स इस असंजमे कज्जति ४१४. पंचेन्द्रिय जीवों का घात करने वाले के दश प्रकार का तं जहा असंयम होता है। जैसे बसविले असजने ४१५. सविधे असंजमे पण तं जहा १. विकाय असं मे, ५.साइज, ७. अजमे ९. पंचविसंमे -- --ठाणं. अ. १०, सु. ७१५ २. आउकाइ अजमे, ४. ६. १०. ६. पाणाम ७. रिज, कामं । दस प्रकार के असंयम - ठाणं. अ. १०, सु. ७०६ चिदिम अधायका विहं संजम कुम्बंति १. सीतामयाओ सोच्खाओ अववशेषेत्ता भवति । २. सोता तेजसा भवति । अश्या भवति । २. ४. श्रममणं क्लेणं असंजोगेसा भवति । १. पाणमा सोखाओ जयवता] न अ सोरणाओं अबबरोवेत्ता भवति । (१) श्रोत्रेन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग करने से 1 (२) भोवेन्द्रिय सम्बन्धी का संयोग करने मे । (३) चक्षुरिन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग करने से । (४) चक्षुरिन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से । (५) घ्राणेन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग करने से । (६) प्राणेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से (७) रसनेन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग करने से । (5) रसनेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से । (६)द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग करने से। (१०) स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से । दस प्रकार के असंयम ४१५. असंयम दस प्रकार का कहा गया है। जैसे(१) पृथ्वीकायिक असंयम, (३) तेजस्कायिक असंयम, (५) वनस्पतिकायिक असंयम, (७) (2) सूत्र ४१४-४१६ असंयम पंचेन्द्रिय जीवों के अघातक दस प्रकार का संगम करते हैं ४१६. पंचाणं जीवा असमारभमाणस्स इसविधे जमे कन्जति ४१६. पंचेन्द्रिय जीवों का घात नहीं करने वाले के दश प्रकार का संयम होता है। जैसे जहाँ संयम, १ चउरिदिया णं जीवा समारभमाणस्स अट्ठविहे असंजमे कज्जति तं जहा--- १खाओ बखरीता भव एवं जाव ७ फरमान सोसावा भव २ रातविमजमे पम्प से जहा पुढविकाइ , २ एणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवद्द wwww (१) ओन्द्रियसम्बन्धी मुलका वियोग नहीं करने से । (२) श्रोषेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से । (३) चक्षुरिन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से । (४) चक्षुरिन्द्रिय- सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से । (५) प्राणेन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से। (६) मानेन्द्रियसम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से। (७) समेन्द्रियसम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से। ८ फासमएणं दुक्खणं संजोगेत्ता भवइ । मजमे जब उसका संजये, जीवकाय असं (२) अकाधिक असंयम, (४) वायुकानि यम, (५) हीन्द्रिय असंयम, (c) रिद्रिय असंयम (१०) अजीवकाय असंयम | - ठाणं, अ. ठाण. अ. ७ सु. ६१५ . ४७१ सु.
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy