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________________ आठ सूक्ष्म चारित्राचार २५ छ8 अंडसुहम छठा अण्ड सूक्ष्म४११.५०-से कि त अबसुहमे ? ४११. प्र.-भगवन् ! अण्ड सुक्ष्म किसे कहते हैं? उ०. अंडमुहमे पंचविहे पणते, तं जहा 10 -अण्ड सूक्ष्म पाँच प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. डहसंडे, (१) उद्दणाण्ड---मधुमपी मस्कुण आदि के अण्डे । २. उक्कलियंडे, (२) उस्कलिकाण्ड--मकड़ी आदि के अण्डे । ३. पिपीलिअंडे, (३) पिपीलिकाण्ड-कीड़ी, मकोड़ी आदि के अण्डे । ४. हलिअंडे, (४) हलिकाण्ड-छिपकली आदि के अण्डे । ५. हल्लोहलिडे। (५) हलोहलिकाण्ड-शरटिका आदि के अण्डे । से छतमत्ण निर्णयेण ना, निग्गीए या अभिक्सगं ये अण्डसूक्ष्मजीव छद्मस्थ निर्धन्य-निर्गन्थियों के बार-बार अभिक्खणं जाणियग्वे पासियो पहिलहियो मथा। जानने योग्य, देखने योग्य और प्रतिलेखन योग्य हैं। से तं अंडसुहुमे । -दसा. द. ८, सु. ५६ अण्ण-सूक्ष्म वर्णन समाप्त । सत्तमं लयणसुहम सप्तम लयन सूक्ष्म४१२.१०-से कि तंगसुहम ? ४१२. ४०-भगवन् ! लयन-सूक्ष्म किसे कहते हैं ? 30-मेगसुहमे पंचविहे पण्णते, तं जहा--- उ.-लयन-सूक्ष्म पांच प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. उत्तगले, (१) उत्तिर्गलयन-भूमि में गोलाकार गड्ढे बनाकर रहने वाले, सूंड वाले जीव। २. भिगुलेगे, (२) भृगुलयन-कीचड़ वाली भूमि पर जमने वाली पपड़ी के नीचे रहने वाले जीव । ३. उज्जए. (३) ऋजुक लयन-बिलों में रहने वाले जीव । ४. तालमूलए, (४) तालमूलक लयन-ताल वृक्ष के मूल के समान ऊपर सकड़े, अन्दर से चौड़े जिलों में रहने वाले जीव । ५. संबुक्कापट्टनामं पंचमे । (५) शम्बुकावर्त लयन-शंख के समान घरों में रहने वाले जीव । ने छउमत्येण निमाथेमबा, निग्गंधीए वा अभिक्सगं मे लयन-सूक्ष्म जीव छमस्थ निर्ग्रन्थ-निर्यन्थियों के बारअभिक्ख नाणियषे पासियो पडिलेहियचे पवा। बार जानने योग्य, देखने योग्य और प्रतिलेखन योभ्य हैं। से तं लेगसुहुमे। -दसा. द. ८, सु. ५७ लयन-सूक्ष्म वर्णन समाप्त। अट्टम सिह सहम-- अष्टम स्नेह सूक्ष्म४१३. प.-से कि तं सिणेह-सुहमे ? ४१३. प्र०-भगवन् ! स्नेह-सूक्ष्म किसे कहते हैं ? -सिह-सुहमे पंचबिहे पणते, जहा उ.-स्नेह-सूक्ष्म पाँच प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. उस्सा , (1) ओस-सुक्ष्म-ओस बिन्दुओं के जीव । २. हिमए (२) हिम-सूक्ष्म- बर्फ के जीव । ३. महिया, (३) महिका-सूक्ष्म-कुहरा, धुंअर आदि के जीव । ४. करए, (४) करक-सूक्ष्म-ओला आदि के जीव । ५. हरतणुए। (५) हरित-तृण-सूक्ष्म-हरे पास पर रहने वाले जीव । से उपत्येण निग्गयेण वा, निपीए वा अभिषषणं से स्नेह सूक्ष्म जीव छमस्य निग्रन्थ-निर्गन्थियों के बार-बार अभिषक्षणं जाणिपठवे पाप्तियग्वे पशिलहियध्वे भवः । जानने योग्य, देखने योग्य और प्रतिलेखन योग्य हैं। से तं सिणेह-सुहमे। -दसा. द. ८, सु. ५८ स्नेह-सूक्ष्म वर्णन समाप्त ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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