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________________ सूत्र ४०४-४०६ आठ सूक्ष्म जीवों की हिंसा का निषेध बारित्राचार [२८३ ३. तेउकाइयअणारम्भे, ४. माउकाइपअपारसमे, (३) तेजस्कायिक अनारम्भ, (४) वायुकायिक अनारम्भ, ५. वमस्सइकाइयअगारम्भे, ६. तसकाइयअणारम्भ, (५) वनस्पतिकायिक अनारम्भ, (६) सकायिक अनारम्भ, ७. अजीवकायमणारम्भ, (७) अजीवकाय अनारम्भ । सत्तविहे असारंभे पण्णले, तं जहा-पुढविकाक्ष्यअसारभे असारम्भ सात प्रकार का कहा गया है । जैसे पृथ्वीकायिक -जाब-अजीवकायमसार । असारम्भ-पावत-अजीवकाय असारम्भ। सत्तविहे असमारमे पण्णसे, तं जहा-पुरविकाइयभसमारंभे असमारम्भ सात प्रकार का कहा गया है। जैसे-पृथ्वी -जाय-अजीवकाइय असमारंमे। -ठाण. अ. ७, सु. ५७१ कायिक असमारम्भ-यावत् -अजीवकाय असमारम्भ । अट्ठमुहमजीवाणं हिसा णिसेहो आठ सूक्ष्म जीवों की हिंसा का निषेध४०५. अट्ट सुडमाई पेहाए, जाई जाणिसु संजए। ४०५. संयमी मुनि आठ प्रकार के सूक्ष्म (शरीर वाले जीवों) को क्याहिगारी भूएसु, आस चिटु सएहि वा ।। देखकर बैठे, खड़ा हो और सोए। इन सूक्ष्म-शरीर वाले जीवों को जानने पर ही कोई सब जीवों की दया का अधिकारी होता है। अट्ठ सुहमाइं आठ सूक्ष्मप०-फयराई अटु मुटुमाई, जाई पुच्छेज्ज संजए। -वे आठ सूक्ष्म कौन-कौन से हैं ? संयमी शिष्य यह पूछे इमाई साइं मेहावी, आइक्वेज वियफ्षणो।। तब मेधावी गौर विचक्षण आचार्य कहे कि वे ये हैउ.-१ सिणे २ पुष्कसुहर्म प, ३-४ पातिगं तहेव य । उ०—(१) स्नेह, (२) पुष्प, (३) प्राण, (४) उतिग, (५) ५ पणगं ६ मीयं हरियं च, ८ अंउसुहम च अट्ठमं ।।। काई, (६) बीज, (७) हरित, (८) अण्ड-ये आठ प्रकार के सूक्ष्म हैं। एबमेगाणि जाणिता, सब्समावेण संजए। सब इन्द्रियों से समाहित साधु इस प्रकार इन सूक्ष्म जीवों अप्पमत्तो जए मिच्न सम्विवियसमाहिए । को सब प्रकार से जानकर अप्रमत्त-भाव से सदा यतना करे । -दस. अ. , गा १३-१६ पढम पाणसुहम प्रथम प्राण सूक्ष्म४०६.५०-से कि तं पाणसुहमे? ४०६. प्र०-भगवन् ! प्राणि-सूक्ष्म किसे कहते हैं ? ३०-पागहमे पंचषिहे पण्णते, ते जहा उ०-प्राणि-सूक्ष्म पाँच प्रकार के कहे गये है, यथा१. किण्हे, २. नीले, ३. लोहिए, ४. हालिद्दे, (१) कृष्ण वर्ण वाले, (२) नील वर्ण वाले, (३) लाल वर्ण ५. सुविकरले। वाले, (४) पीत वर्ण वाले, (५) शुक्ल वर्ण वाले । अरिष कंचु अणुवरी मर्म जा ठिया अवलमाणा सुक्ष्म कुंयुए (पृथ्वी पर चलने वाले द्वीन्द्रियादि सूक्ष्म प्राणी) छतमत्वाण निरागंयाग वा, निग्गंधीण वा नो चमखु. यदि स्थिर हों, चलायमान न हों, छद्मस्थ निबन्ध-निन्थियों को फासं हवमागच्छा। शीघ्र दृष्टिगोचर नहीं होते हैं। जा अढिया चसमाणा छउमत्याण निग्गंयाण या सूक्ष्म कुंथुए यदि अस्थिर हों, चलायमान हों तो छदमस्थ निम्मंथीण वा चपखुफासं हवमागपछा। नियंन्य निग्रंथियों को शीघ्र दृष्टिगोचर हो जाते है। मा छउमत्येण नियंत्रण वा, निग्गंथीए वा अमिक्सगं ये प्राणी-सूक्ष्म छद्मस्थ निन्थ-निन्थियों के बार-बार अमिरवणं जाणियन्या पडिहियध्या हवा जानने योग्य, देखने योग्य और प्रतिलेखन योग्य हैं। से तं पाणसुहमे। -दसा. द. ८, सु. ५१ प्राणी सूक्ष्म-वर्गन समाप्त । १ (क) वासावासं पणजोस विधार्ण इह खलु निग्गंधाण वा, निग्गयीण वा इमाझं अट्ठ सुहमाई जाई छउमत्येणं निग्गंधेण या निगंथीए या अभिक्खणं अभिक्खणं जाणियवाई पासियब्वाई पडिलेहिपञ्चाई भवंति, तं जहा१. पाणसुहम, २. पणगमुहुम, ३. बीसुहुमं, ४. हरियसहुम, ५. पुष्फसुहुम, ६. अंडसुहुमं, ७. लेणसुहमं, ८. सिणेहसुहुमं । -दसा. ६, ८, सु. ५० (ख) इस गाया में "उत्तिगहुम" है और ठाणं अ. सू. १६ में 'लेणसुहम" है। यह कवल शब्द भेद है। दोनों का अर्थ समान है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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