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________________ सूत्र ३९५-३१० बिना प्रयोजन सूई आदि याचना का प्रायश्चित्त सत्र चरित्राचार [२७७ - - - - जे भिक्खू पिपलगस्त उत्तरकरणं जो भिक्षु कैची का उत्तरकरणअण्णस्थिएण वा, गारस्थिएग वा अन्यतीथिक से या गृहस्थ से कारैति, कारत वा साइज्जइ। करवाता है, करवाने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्खू नहायणगस्स उत्सरकरण जो भिक्षु नखछेदनक का उत्तरकरणअण्णउस्थिएण वा, गारस्थिएन या अन्यतीथिक से या गृहस्थ से कारेति, कारत वा साइज्जा। करवाता है, करवाने वाले का अनुमोदन करता है । जे भिक्खू कग्णसोहणगस्स उत्तरकरण जो भिक्षु कर्णशोधनका का उत्तरकरणअण्गस्थिएण या, गारस्थिएण वा अन्यतीधिक से या गृहस्थ से कारेति कारतं वा साइज्जइ। करवाता है, करवाने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आबज्जइ मासियं परिहारद्वाणं अणुग्धाइयं । उस भिक्षु को मासिक अनुदातिक परिहारस्थान (प्राय -नि. उ. १, सु. १५-१५ श्चित्त) आता है। सई आईणं अणद्र जायणा करणस्स पायच्छित्त सत्ताई- बिना प्रयोजन सूई आदि याचना का प्रायश्चित्त सत्र३५६. जे मिक्खू अणद्वाए सूह ३४६, जो भिनु बिना प्रोडर मई की याचना . जाएइ जायंतं वा साइज्जइ। करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिमखू अगदाए पिप्पलग जो भिक्षु बिना प्रयोजन कैपी की याचनाजाएर जायंतं वा साइज्ज। करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। मे भिक्खू अणद्वाए नहन्छयणग जो भिक्षु बिना प्रयोजन नखछेदनक को याचनाओएइ जायंत या साइम्जा । करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्लू अणट्ठाए कम्गसोहणगं जो भिक्षु बिना प्रयोजन कर्णशोधनक की याचनाजाएर जयंतं का साइज्जइ। करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है । त सेवमाणे आवजह मासियं परिहारद्वाण अणुग्याइयं । उस भिक्षु को मासिक अनुदासिक परिहारस्थान (प्राय -नि, उ, १, सु. १६-२२ श्चित) आता है। सई आईणं अविहि जायणा करणस्स पायच्छित सत्ताई- अविधि से सूईआदि याचना के प्रायश्चित्त सूत्र३६७. ने भिक्खू अविहीए सूई-- ३६७. जो भिक्षु अविधि से सूई की याचना-- जाएइ जायंत वा साइज्मह । करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। के मिक्स अविहीए पिप्पलग जो भिक्षु अविधि से कैची की याचना-- माएह जायंत वा साहजई । करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। मे भिक्खू अविहीए नहच्छयणगं जो भिक्षु अविधि से नखछदनक की याचनाजाएर जायंते वा साइज्जह । करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्खू अविहीए कण्णसोहगर्ग जो भिक्ष अविधि से कगंशोधनक की याचनाजाएइ मायसं वा साइज्जइ । करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। सं सेवमाणे आवस्जद मासियं परिहारदाणं उधाइयं । उस भिक्षु को मासिक अनुातिक परिहारस्थान (प्राय -नि. उ. १, सु. २३-२६ श्चित) आता है। सूई आईणं विपरीयपओगकरणस्स पायच्छित सुत्साई- सूई आदि के विपरीत प्रयोगों के प्रायश्चित्त सूत्र३६५.जे भिक्खू पाबिहारियं सूा जाता ३६. जो भिक्ष पाडिहारिय=प्रत्यर्पणीय सूई की याचना करकेपर सिविस्सामि त्ति पापं सिवा सिस्वंतं वा साहज्जा। "वस्त्र सीवंगा" ऐसा कहने के बाद पात्र सीता है, सीवाता है, सीने वाले का अनुमोदन करता है। ....:
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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